भारत भी इसका अपवाद नहीं है और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। कोरोनावायरस से, भारतीय नागरिकों के, जीवन की रक्षा के लिए ,मार्च के तीसरे सप्ताह से, देश में लॉक डाउन की, स्थिति चल रही है । आगे भी कुछ समय और, लॉक डाउन जारी रहने की संभावना है । सही समय पर लॉक डाउन करने के कारण ही, भारत में अन्य देशों की तुलना में, काफी हद तक स्थिति नियंत्रण में नजर आती है। 130 करोड़ की आबादी वाले राष्ट्र में, इस महामारी से बचने के लिए ,जागरूकता बढ़ाई जा रही है। स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है। लेकिन फिर भी कोरोना संक्रमितों की संख्या, मई के अंत तक एक लाख पार कर चुकी है। इसमें से उन के स्वस्थ होने की दर बहुत अच्छी है। परंतु कोरोनावायरस की वजह से, इसी दौरान, 4000 से अधिक लोग जान गवां भी चुके हैं।
भारत में, 25 मार्च 2020 से 14 अप्रैल 20 20 तक के, लॉक डाउन के पहले चरण में, बहुत सख्ती से पालन किया गया। आवश्यक सेवाओं के अलावा, सभी अन्य आर्थिक व सामाजिक गतिविधियों को, पूर्णतया प्रतिबंधित किया गया। "जान है तो जहान है", को ध्यान में रखते हुए, जो जहां है, वहीं रुकना पड़ा। ट्रेन, बस, हवाई यातायात सब बंद कर दिए गए। लोगों ने भी, इस लॉक डाउन का, सुरक्षित रहने की दृष्टि से, बहुत संजीदगी के साथ पालन किया। इस दौरान विश्व के अन्य देशों में, यह महामारी अपना विकराल रूप दिखा रही थी, उसके मद्देनजर भारत में स्थिति बहुत अधिक नियंत्रण में नजर आ रही थी। भारत ने "हाइड्रोक्लोरोक्वीन", नामक दवाई, अमेरिका सहित अन्य देशों में उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया था, लॉकडाउन के पहले चरण में इसके अलावा, चीन से आए घटिया 'पीपीई किट एवं मास्क' की समस्या से निबटने के लिए, सरकार के निर्देश पर, भारतीय उद्योग जगत ने , तुरंत सक्रिय होकर कोरोनावायरस का सामना करने के लिए, "किट व मास्क" की आपूर्ति शुरू कर दी, तथा 1 महीने के अंदर ही अंदर ही जीरो से शुरू करके 7000 करोड़ की नई इंडस्ट्री खड़ी कर दी। अब न केवल, भारत की आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है, अपितु निर्यात भी किया जा रहा है। गौरतलब बात यह भी है कि, इस नई इंडस्ट्री में केवल बड़े उद्योगपति ही शामिल नहीं है ,बल्कि छोटे-छोटे उद्योग चलाने वालों के साथ साथ स्वयं सहायता समूह की महिलाएं भी शामिल हैं। निश्चित रूप से इस प्रयोग ने, चुनौतीपूर्ण स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए, नए अवसर खोल दिए।
संतोष की बात यह भी है कि, सही निर्णय लेकर, सही समय पर, लॉक डाउन लगाकर, सरकार केवल कोरोना की समस्या में ही उलझ कर नहीं रहे गई, अपितु इस आपदा में, भविष्य की अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए, स्थापित आर्थिक रीति - नीति के आकलन में भी जुट गई। श्विक अर्थव्यवस्थाओं पर नजर रखते हुए, भारतीय अर्थव्यवस्था को पुष्ट करने के लिए, चिंतन मनन के उपरांत, लॉक डाउन के चौथे चरण अर्थात मई के तीसरे सप्ताह में, वित्त मंत्री ने कई उद्घोषणाएं की प्रधानमंत्री ने, आत्मनिर्भर भारत के लिए, "वोकल फॉर लोकल" का नारा दिया स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, शायद पहली बार, महात्मा गांधी की भावना के अनुरूप, भारतीय अर्थव्यवस्था की, "रीढ़" कुटीर एवं लघु उद्योगों, पर ध्यान केंद्रित किया गया है तथा उनको बढ़ावा देने के लिए नियम कानूनों में बदलाव भी किए गए हैं। जो वास्तव में स्वागत योग्य हैं। 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में, अर्थव्यवस्था के विभिन्न छोटे-छोटे आयामों, को भी शामिल किया गया है। हो सकता है, आने वाले समय में, "सेंसेक्स" के उतार-चढ़ाव में, इनका प्रभाव परिलक्षित हो ना हो, किंतु जमीनी स्तर पर, गांव - गरीब, की स्थिति पर, स्थानीय रोजगार पर, निश्चित रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
"कोविड 19" की, विकट परिस्थितियों का सामना करने के लिए, भारतीय नागरिकों को, 'आत्मरक्षा एवं आत्मसम्मान' का ध्यान रखते हुए काम करना चाहिए। अपनी अपनी जिम्मेदारियों को, नए आयाम देने चाहिए। क्योंकि "भारत" भारत के नागरिकों से है, केवल मतदान के माध्यम से चुनी हुई सरकार से ही नहीं सरकार अमूर्त है नागरिक मूर्त सरकार के निर्देश हो सकते हैं, आचरण, नागरिकों को ही करने होते हैं। जीवन को और अर्थव्यवस्था को, पटरी पर लाने के लिए, "लॉक डॉउन 5 या अनलॉक वन" शुरू हो गया है । बहुत सी गतिविधियों पर से , प्रतिबंध हटा लिया गया है। किसी भी बात को, समझने - समझाने और व्यवहार में लाने के लिए, 60 - 70 दिन, काफी होते हैं। कोरोनावायरस के दुष्प्रभावों से बचने के लिए, नागरिकों को खुद जिम्मेदारी लेनी होगी। "अपनी और अपने परिवार की रक्षा के लिए 2 गज की दूरी और मास्क जरूरी ही है" पिछले तीन - चार दशकों से, पूरे विश्व में चीन के बने, उत्पादों का दबदबा बना हुआ है। कोरोना महामारी के, विश्वव्यापी होने में भी चीन को संशय की दृष्टि से देखा जा रहा है। इस कारण विश्व के देशों में, चीन के प्रति नकारात्मकता बढ़ती जा रही है।
भारत के साथ भी, 'चीन' जब तब, सीमा विवाद में उलझता रहता है । इन विकट परिस्थितियों में भी , पूरे मई के महीने में, भारत की लद्दाख सीमा के आसपास , सीमा पार करने की कोशिश में, लगा हुआ है । सीमा क्षेत्रों में , चीन ने , लगभग 5000 चीनी सैनिक जमा कर दिए हैं । जो वास्तव में , भारत के लिए युद्ध की स्थिति, पैदा करने जैसे संकेत हैं, और चिंताजनक भी हैं । वैसे तो सैन्य - स्तर व कूटनीतिक - स्तर पर बातचीत चल रही है । किंतु ऐसे में, यदि सभी भारतीय नागरिक, तुरंत प्रभाव से , अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी समझते हुए, "चीनी उत्पादों" का "पूर्ण बहिष्कार" कर दें तो , चीन की अर्थव्यवस्था पर कठोर प्रहार होगा , और वह कमजोर होगा और यह हमारे सैनिकों और उनके परिवारों के प्रति सम्मान और अपनत्व का भाव भी पैदा करेगा। लाॅकडाउन के दौरान , सामान्य भारतीय परिवार, काफी हद तक, "आत्मनिर्भर व भारतीय" भी हो गए हैं, बिना किसी बड़ी परेशानी के, खुशी और संतोष के भाव के साथ
आर्थिक स्तर पर, आय के पैमाने के आधार पर , भारत की जनसंख्या को, उच्च आय वर्ग, मध्यम अध्याय वर्ग और निम्न आय वर्ग में, विभाजित किया जाता है। "उच्च आय वर्ग", जनसंख्या का मात्र 1-2% ही है और "निम्न आय वर्ग" 22 - 23 प्रतिशत लगभग 75-76% जनसंख्या "मध्य आय वर्ग" में आती है। मध्य आय वर्ग को भी, " उच्च मध्यवर्ग", "मध्यम मध्य वर्ग" एवं "निम्न मध्यवर्ग" में वर्गीकृत किया जाता है। मूलतः मध्य आय वर्ग के, आचार - विचार, व्यवहार - संस्कार में, कोई बहुत अधिक अंतर नहीं होता। क्रय शक्ति के आधार पर ही, इन्हें आंका जाता है। इसलिए "स्टेटस सिंबल", यहां पर बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। निम्न मध्यम वर्ग - मध्यम मध्य वर्ग और उच्च मध्यवर्ग - मध्यम मध्यवर्ग में, जाहिर तौर पर, अंतर कर पाना बहुत मुश्किल होता है। मध्यवर्ग का "मूल मंत्र", 'बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो खाक की' होता है। पिछले कुछ सालों में, लगभग-लगभग 20 - 25 वर्षों से, विदेशी प्रभाव के कारण, भारत में मॉल कल्चर बहुत अधिक पनप रही है। जहां 'लोकल' सामान कम और 'विदेशी ब्रांड' पूरे तामझाम के साथ, भारत के उच्च मध्य वर्ग को आकर्षित करते हैं। यही "उच्च मध्यवर्ग" जो कि "मध्यम मध्य वर्ग" के साथ ही, घुला मिला रहता है, केवल और केवल "अधिक क्रयशक्ति" के कारण "उच्च मध्य वर्ग" की श्रेणी में आ जाता है तो "स्टेटस सिंबल की थ्योरी" के कारण, "मध्यम मध्यम वर्ग" में "विदेशी ब्रांड्स" का "प्रचारक" बन जाता है। छठे और सातवें "पे कमीशन" लागू होने के बाद और महिलाओं में भी आर्थिक निर्भरता के कारण , "मध्यम मध्य वर्ग एवं उच्च मध्य वर्ग" का दायरा काफी अधिक बढ़ गया है। जो कि वास्तव में, बहुत अच्छी बात है, और आर्थिक उन्नति को भी दर्शाता है, किंतु "मॉल कल्चर", "विदेशी ब्रांड स्टेटस सिंबल" के कारण , इसका "सकारात्मक प्रभाव", "भारतीय अर्थव्यवस्था" पर पड़ने की बजाय विदेशी अर्थव्यवस्था की ओर रुख कर जाता है। हमारे उत्पाद भी तीन श्रेणियों में विभाजित होते हैं। आवश्यक उत्पाद( वस्तुएं ), सुखकर उत्पाद( वस्तुएं ), एवं विलासिता पूर्ण उत्पाद (वस्तुएं) आवश्यक उत्पाद और वस्तुएं तो सभी स्थानों पर उपलब्ध रहती हैं। सुखकर एवं विलासिता पूर्ण वस्तुओं के लिए, अलग-अलग स्तर के बाजार भी हो सकते हैं। विदेशों की नकल के आधार पर, पनपे "एयर कंडीशंड मॉल्स" में "विदेशी ब्रांड्स और विलासिता पूर्ण वस्तुएं" ही अधिक उपलब्ध होती हैं , जिनका "फोकस टारगेट", भारत के, "युवा एवं आर्थिक उन्नति कर रहा मध्यम मध्य वर्ग एवं उच्च मध्य वर्ग" ही होता है। यहां पर खर्च किया गया पैसा, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से, भारतीय अर्थव्यवस्था को "कम" और विदेशी अर्थव्यवस्था को "अधिक" पुष्ट करने का काम करता है। "कोविड 19" के कारण "2 महीने से बंद मॉल्स" के कारण, हमारी सामान्य सुख-सुविधा एवं दैनिक जरूरतों में तो शायद ज्यादा दिक्कत नहीं हुई है।
इतना तो, अब "हमें भी" समझ लेना चाहिए कि अपनी मेहनत से कमाई हुई "आय" को विदेशी अर्थव्यवस्था को पुष्ट करने के लिए, "माॅल्स" में बहुत अधिक खर्च करने की जरूरत नहीं है। "स्टेटस सिंबल" की "भावना को पुष्ट करने" के लिए "भारतीय विलासिता पूर्ण वस्तुओं" और "भारतीय पर्यटन" पर भी पैसा खर्च किया जा सकता है। इस से भारतीय अर्थव्यवस्था को पुष्ट किया जा सकता है। सोच को परिष्कृत करने की आवश्यकता है। "वोकल फॉर लोकल", का नारा "एफ एम सी जी" क्षेत्र के माध्यम से, भारतीय "उपभोक्ताओं" को "जागरूक" करने एवं उनकी "शक्ति दर्शाने" का ही पर्याय है। अपने औद्योगिक ज्ञान एवं व्यापारिक मेधा के दम पर ही, "गुप्त काल" में "वैश्विक अर्थव्यवस्था" में, "भारत 50% से अधिक" हिस्सा रखता था और सोने की चिड़िया कहलाता था। सैकड़ों साल की गुलामी और आक्रांताओं के आक्रमणों के बावजूद भी, "अंग्रेजों" के, भारत आने तक भी, वैश्विक "जी डी पी" में भारत का हिस्सा 22-23 प्रतिशत तक का था। 1500-1600 ईस्वी में पश्चिम में हुई, "औद्योगिक क्रांति" का तो, तब तक भारत में कोई प्रभाव भी नहीं पड़ा था। यह सब भारत के एक कृषि प्रधान देश एवं लघु और कुटीर उद्योग धंधों के बल पर था। तत्कालीन शासकों का मुख्य काम, भारत के मूल निवासियों के हितों की रक्षा करना नहीं था बल्कि यहां की सम्पदा को लूटकर अधिग्रहित करना एवं धर्मांतरण करना ही होता था। अंग्रेजों ने आकर, न केवल , सीमित हुई समृद्धि को लूटा, बल्कि इसे समूल नष्ट करने का षड्यंत्र भी रचा और भारतीय समाज में हीन भावना पैदा करने का भी प्रयास किया। औद्योगिक क्रांति के दम पर अंग्रेजों ने पश्चिमी जगत को, श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश की
स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य तिलक ,नेताजी , शहीद भगत सिंह और गांधी जी इत्यादि नेताओं ने, भारत की "आत्मा" को जगाकर, एक सूत्र में पिरो कर, स्वाभिमान और स्वराज का मार्ग प्रशस्त किया। लंबे समय तक, विभिन्न आंदोलनों के, नायक रहे गांधी जी को, भारत के सभी क्षेत्रों एवं वहां के नागरिकों की क्षमता को, जानने - समझने का अवसर मिला। इसीलिए स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने, भारत की आत्म निर्भरता के लिए, गांव - गरीब, किसान की समृद्धि के लिए , सदियों पुरानी "आर्थिक नीति" के आधार पर, कृषि, लघु व कुटीर उद्योगों को, मजबूती के साथ पुनर्स्थापित करने पर, बल दिया। महात्मा गांधी के आंदोलनों में लोकप्रिय, "चरखा और खादी" इसी सुदृढ़ आर्थिक नीति का प्रतीक था । पश्चिमी देशों की, औद्योगिक विकास की अंधी दौड़ में, पीछे-पीछे भागते हुए, हम जाने-अनजाने, आर्थिक - विषमता, गांव - शहर, भ्रष्टाचार, पर्यावरण प्रदूषण इत्यादि की , "खाई" को, चौड़ा और गहरा करते गए सामान्यतया, औद्योगिक विकास का मुख्य आधार "कृषि" ही होता है। उद्योगों को, "कच्चा माल" सामान्यतः कृषि व संबंधित क्षेत्रों से ही मिलता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है । स्वतंत्रता प्राप्ति के समय, सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 80% से अधिक हिस्सा, कृषि संबंधित क्षेत्रों से आता था। अभी भी, "जी डी पी" का 60 - 65% हिस्सा कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है। आजादी के बाद लघु व कुटीर उद्योगों के लिए, योजनाएं एवं नीतियां और मंत्रालय तो बने, किंतु यथार्थ में , उतना महत्व, मान - सम्मान नहीं मिला, जिससे इनका , "प्रतिस्पर्धात्मक" विस्तार हो पाता । परिणाम स्वरुप, यह क्षेत्र दोयम दर्जे का होकर रह गया।
"कोविड 19 और लाॅकडाउन" के कारण शिथिल हुई, अर्थव्यवस्था को, पुनः गति देने के उद्देश्य से, विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा, भारतीय वित्त मंत्री द्वारा की गई है। महात्मा गांधी व अन्य स्वतंत्र सेनानियों के, "स्वदेशी व आत्मनिर्भरता" के मूल मंत्र को ध्यान में रखकर, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के, प्रोत्साहन व दिशा निर्देशों के साथ, भारत की "पहली महिला वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण जी" ने स्थापित औद्योगिक एवं क्षेत्र सेवा क्षेत्रों में, अतिरिक्त प्रोत्साहन देने के साथ-साथ, कृषि, लघु व कुटीर - उद्योगों को विशेष रूप से, अधिक महत्व और बढ़ावा देने का प्रयास किया है। "एम एस एम ई" क्षेत्र को विस्तार देने के लिए और अनुकूलतम संभावना का, उपयोग करने की दृष्टि से , अधिकतम सीमा 5 गुना बढ़ा दी गई है। "माइक्रो" इकाइयों की सीमा अधिकतम एक करोड़ से बढ़ाकर ₹50000000 कर दी गई है। इसी प्रकार लघु व मध्यम उद्योगों की भी अधिकतम सीमा 10 करोड से 50 करोड़ और 20 करोड़ से 100 करोड़ रुपए तक कर दी गई है । इन इकाइयों को मजबूती प्रदान करने के लिए, कई प्रकार के ऋणों की व्यवस्था के साथ-साथ, सरकारी स्तर पर 200 करोड़ रुपए तक के, सरकारी "टेंडरों" के लिए, विदेशी निवेशकों पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा "कोरोनावायरस" के कारण पैदा हुए अविश्वास के कारण, "चीन" से कई विदेशी कंपनियां बाहर निकल रही हैं। बहुत सी कंपनियां, भारत में आने की इच्छुक भी हैं। भारत सरकार के साथ-साथ ,राज्य सरकारें भी, इन कंपनियों का स्वागत कर रही हैं, तथा आवश्यक कार्य योजना के साथ, सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए भी प्रयासरत हैं। "लॉक डाउन" के कारण गिरती विकास दर, घटती जी डी पी दर, तिमाही - छमाही के उतार-चढ़ाव, सेंसेक्स के चढ़ने - उतरने के हो-हल्ले के दौरान भी, आम नागरिकों को अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि, भारतीय अर्थव्यवस्था मात्र "बाजारीकरण" पर आधारित नहीं है। अपितु, ठोस तरीके से, कृषि और स्थानीय लघु उद्योगों की नींव पर अवस्थित है। हमारे बड़े औद्योगिक घराने, न केवल भारत में विश्वसनीय तरीके से, विकास और अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने की क्षमता रखते हैं, बल्कि विश्व में भी , भारत की औद्योगिक एवं व्यापारिक क्षमता को प्रर्दशित करते हैं इसके अतिरिक्त "कोविड-19" ने विदेशी निवेशकों को, भारत में अधिक निवेश करने का, "अवसर" भी दे दिया है।