Friday, 29 May 2020

दोहरा कर बोझ या नई सोच ?

वर्षो से चली आ रही विकास की सुस्त चाल और कम्प्यूटर क्रांति से पहले की मानसिकता के चलते, बुलेट ट्रैन और स्मार्ट सिटी जैसी अवधारणाओं उतपन्न होना स्वाभाविक है। इसी प्रकार भारतीय नागरिकों द्वारा उठाई हा रही 'दोहरी कर' व्यवस्था को अगर इकहरी व्यवस्था में बदलने की बात को जाये तो तथाकथित विशेषज्ञों को तुरंत तर्क होगा को विकास पंगूहो जायेगा ?
इतने वर्षो से विकास को पैरोकार मणि जाती रही है "दोहरी कर व्यवस्था" के बावजूद प्रति वर्ष घटे की अर्थव्यवस्था ही बढ़ती चली आ रही है और तो और "करो" द्वारा एकत्रित आय कितने हो घोटालो में डूबती जा रही है। समानांतर कर से कर चोरी काले धन मई भी इजाफा हो रहा है। कर चोरी रोकने के लिए बड़े-बड़े कदम विज्ञापनों पर करोड़ो का खर्च , "कर" एकत्र करने का लम्बा चोदा जटिल संस्थागत धनचे का घरच और भी न जाने क्या - क्या।
सेस, वाट, टोल टैक्स, एक आम भारतीय नागरिक अपनी साधारण सी आय में से कितने "कर" सरकार को दे देता है। सोचने का विषय है


कर्मचारी सबसे पहले अपने चेतन में से "आयकर" देता है भले ही उस की ' आय ' उसके परिवार की जरूरते पूरी भी कर पा रहा हो या नहीं , सामाजिक स्तर पर भी उसके व्यक्ति गत स्तर की सुरक्षा पर पाये या नहीं, आकस्मिक बाधाओं से स्वयं और परिवार को बचाने की क्षमता रखती हो अथवा नहीं, प्रगतिशील समाज और विकसित होने की दिशा में बढ़ रहे राष्ट्र की नव पीढ़ी अर्थात स्वयं के बच्चो की आकांक्षाओं और क्षमताओ को पोषित करने की क्षमता रक्खति हो या नहीं। किन्तु उस कर्मचारी को "आयकर" तो देना ही होगा क्यूंकि वह सरकारी दस्तावेजो, दर्शनीय (दिखाई देता) आयकर डे कर्मचारी है।
अगर मंदी के दौरान या किसी कारणवश वह कर्मचारी बेरोज़गार हो गया हो तो बात अलग है और स्पष्ट है की वह ' आयकर ' नहीं देगा और यह सबको मान्य भी होगा किन्तु इस बेच उसका और उसके परिवार के खर्च के बारे में भी क्या किसी को कोई सरोकार होगा ? इतने सालो ' जिन्हे ' आयकर ' दिया है क्या उन्हें भी ? कदापि नहीं ?
  1. कर्मचारी कुछ खरीदता है तो टैक्स
  2. कुछ पहनता है तो टैक्स
  3. कुछ खता है तो टैक्स
  4. कहीं जाता है तो टैक्स
  5. कहीं रहता है तो टैक्स
कुछ मनोरंजन कहता है तो टैक्स आदि ये सब किन के अतिरिक्त टैक्स सरकार को ही दे रहा है पर फिर भी सामान्य सुविधाए नहीं मिलती मतलब यह है की अगर वह कमा रहा है तो भी टैक्स और खर्च कर रहा है तब भी टैक्स।
खर्च कर रहा है तब वह स्वं को संतुष्ट भी कर अहा है उस वक़्त टैक्स देना इतना बुरा महसूस नहीं होता किन्तु मेहनत की कमाई में से, पारिवारिक जरुरतो को रोक कर, जब वह "आयकर" देता है और फिर सरकारी घोटाले और उपव्यय होता है तो निशांधे वह काफी कष्ट करी होता है और फिर चतुर लोगों द्वारा कर चोरी के हत्कंडे अपनाये जाने शुरू होते है। वो क्यों न प्रगतिशीलता के चलते, भारत में भी, नै सोच को अपनाते हुए आयलर मुक्त अर्थव्यवस्था की सुरुआत की जाती।
किन्तु इसके साथ ही सरकार द्वारा विकास हेतु धन इकट्ठा करने के उदेश्ये से १० लाख प्रतिवर्ष से अधिक आय वालो को इस बजट में अपनी अनुमानित कर राशि' अपने गप्प अकाउंट या कोई नया अकाउंट में ट्रांसफर करवा दी जाये ताकि व्यक्ति का पैसा व्यक्ति के नाम ही रहेगा और सरकार के पास काम / विकास के लिए फण्ड इकठा होगा।
नवभारतनिर्माण नई उमीद व नई सोच के साथ।

Thursday, 28 May 2020

The basis of Indian economy - Indian woman

Indian women performs laborious labor, works in fields, is also arable, even in the organizational sector their presence is registering at every level and contributing to the economy. Women who carry burdens of temples, charity, pilgrimage- bathing, are jewelery lovers, hand pick over husband’s pocket (women's contribution to the economy?) What are women doing? On marriages, couples - congestions, etc., spending extravagance through rituals, appear heavy on men's pockets, women don’t they put the economy in crisis? Throughout the year they are busy in the name of festivals, and in the kitchen; time-consuming, modern women. Are they able to can prove their value and dedication to society, nation and economy?

Indian society has been religious, emotional, and conservative since millennia. During the last 1000 years of deliberate suppression, the society has been able to with stand the onslaught of foreign aggressors and has retained its character, but some of the malpractices also crept in and gained roots in the society. From time to time, the great wise men and social reformers like Tulsi, Kabir, Dayanand Saraswati, Raja Ram Mohan Rai, Ishwar Chand Vidya Sagar, and Swami Vivekananda etc and other during their own time and regions, tried to get rid of it. There was some degree of success and there is still a lot of work to be done.
In the Indian context, suppressed-downtrodden woman, when she connects herself with Indian culture as a mother, she automatically gets the power and attains Narayani form, to run the society, nation and economy.

Onam, Pongal, Lohri are initiation of the Festivals starting with, the dawn of the day of Gods on Makar Sankranti, only the simple and accessible food items like Khichdi so that it reaches the last to the lowest person in the society, these charitable women continue their donations in the name of charity. Apart from local economy through pilgrim baths, the economy reinforces the economy from one end to the other. In addition to this, indirectly, the "money" used in these activities is also being streamed in the society and the economy. In the name of pilgrim place, wherever women go, they carry their currency with them to make economy stronger.
The jewelery loving woman, who steels money from her husband's pocket, preserves the mood for her husband and family as well as for society and the economy. The most sophisticated and refreshing example of this is the worldwide recession of 2008, when the world was in hitch holes in the vortex of the slowdown of all the economies, there was no special impact on our Indian economy. Foreign economists adorned India on this situation, and then they came to know that sensible finance management and saving trend of the Indian woman kept the economy steady.
Traditional customs such as marriages, etc. have almost run throughout the society in the whole year. These custom are managed by the lady of the house. Through these customs, the virtue of almost all the main sections of the society is also achieved and then they are also nurtured. Women, who know the meaning of fatigues, actually spend as per the ability and capacity of the family to make the best contribution in the family's liability and economy.
Holi - Diwali, Eid, Christmas, Shitala Ashtami, Chhat pooja, Durga Pooja, Guru Poojan, Ganesh Chaturthi, Shama Parv, etc. From the east to the west and from north to south, the whole society fills with enthusiasm. Festivities Provide employment to the society as well, it increases and emphasises the value of farmer’s crop production. Provides opportunities for industries in the production, through merchants, make the economy prosper through money circulation. In the western economy, throughout the year, music concerts, or by different events, their economy is not strengthened as compared to Diwali in India. Globally business houses want to encash the opportunity on the occasion of Diwali in India. According to the statistics, the business of the entire year 35% -40% alone accounts for Diwali. Government and Private Business houses, for them, economic planning begins 8-10 months before Diwali and they make their plans and strategies.
Festivals that run throughout the year give the economy a different level and provide strength and stability.
It is also worth mentioning that no matter what product or advertisement it is preferred to the family and the woman is kept in the main role. “सर्वे भवन्तु सुखिना, सर्वे सन्तु निरामया” inspires the depth of the life force and economy of India due to the spirit and the nature of the festival. The tradition of celebrating different days, on the basis of our festivals, has inspired the west of celebrating different days, but it is limited only to exchange of cards and gift items. Being limited cannot neglect the effect. Whereas we have festivals like Raksha Bandhan, or Bhai Dauj, Karwa Chauth or Chhat festivities, all in the society, without any discrimination, become indistinguishable during that time. It goes without saying that "woman" is the axis of all of these. We have also been told that "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" means that where the women are honoured the deities reside there.
Perhaps Indian women carrying burdens like, Orthodox, Traditionalists, are sublime and not so bad. They are guiding force of the Indian Economy.

Wednesday, 27 May 2020

पहले दिन से 15वें दिन तक इन लक्षणों से जानें आपको कोरोना है या नहीं?


कोरोनावायरस के लक्षण सर्दी-बुखार और सीजनल फ्लू से थोड़े बहुत मिलने के कारण लोग संशय(कन्फ्यूजन) में हैं। आपका संशय दूर करने के लिए यहां हम आपको बता रहे हैं कि पहले दिन से 15वें दिन तक कोरोनावायरस शरीर को कैसे प्रभावित करता है और मरीजों में कैसे लक्षण दिखते हैं:
1-3 दिन: लक्षणों की शुरुआत :
  •     सांस संबंधी लक्षणों के साथ शुरू हो सकता है पहले दिन हल्का बुखार जैसा फील होता है तीसरे दिन तक कफ और गले में खराश
  • 4-9 दिन: फेफड़ों में असर :
  •    3 से 4 दिन में वायरस फेफड़ों तक पहुंच जाता है चौथें से नौवें दिन के बीच सांस लेने में दिक्कत बढ़ जाती है फेफड़ों की थैली या एल्वियोली में सूजन शुरू हो जाता है फेफड़ों की थैली में तरल पदार्थ भर जाता है और मवाद निकलने लगता है इस कारण सांस की दिक्कत और ज्यादा हो जाती है।
  • 8-15 दिन: रक्त संक्रमण :
  •    फेफड़ों से होकर संक्रमण हमारे ब्लड में पहुंच जाता है एक हफ्ता बीतने के साथ ही सेप्सिस जैसी घातक बीमारी भी हो सकती है संक्रमित पांच फीसदी ऐसे मरीजों को आईसीयू में रखना जरूरी हो जाता है अब सवाल यह भी है कि आखिर कोरोना की वजह से लोगों की मौतें कैसे हो रही हैं। द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक मरीजों की मौत के पीछे खून में ऑक्सीजन की कमी होने से सांसों का बंद होना और हार्ट अटैक एक सामान्य वजह रही। 191 मरीजों पर शोध करने पर पाया गया कि इन मरीजों के संक्रमण और अस्पताल के छुट्टी के बीच औसत समय 22 दिन है। वहीं, इलाज के दौरान 18.5 दिनों में मत्यु हुई।


  • विश्व में तेजी से फैलता हुआ और जानलेवा संक्रमण की छाप छोड़ता हुआ इन्फेक्शन बन चुका है। सभी देशों के लिए एक मुसीबत और मौत का कारण बन गया है जिससे सभी देश निजाजत और छुटकारा पाने के लिए एकजुट हो गए हैं चाहे वो चीन ,इटली हो या भारत जैसा विशाल अर्थव्यवस्था वाला देश हो । अभी इस इन्फेक्शन से चीन और इटली जैसे देश इस संक्रमण से ज्यादा तादात में झुजस रहे है । विश्व के सबसे बड़ी कंपनियां जैसे जॉनसन एंड जॉनसन सन ,ऑफ श्री और मर्कक को तमाम जितनी भी बड़ी कंपनियां इस वायरस से खिलाफ एंटी-डोज़ बनाना शुरु कर दिए है। लेकिन अभी तक कोई सफल प्रयोग नहीं हो पा रहा है।
    जिस के कारण अभी चीन में 20000 से ज्यादा लोग इस वायरस से संक्रमित गए है और 426 लोगों की अभी तक मौत की पुष्टि भी हो चुकी है इनके अलावा बाहर के हांगकांग में भी करोना वायरस के कारण मौत हो चुकी है इस कोरोना ने भारत में भी अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी है सबसे पहले भारत में इसका संक्रमण को केरल में देखा गया जिसके कारण 3 से ज्यादा लोगों की मौत की पुष्टि भी हो गई है जिसके चलते हुए भारत में सभी राज्यों को हाई अलर्ट और सावधानी बरतने की सरकार के द्वारा आदेश पास किए गए हैं भारत में 50 से ज्यादा लोगों को एक जगह पर इकट्ठे खड़े या बैठने की अनुमति नहीं दी गई है क्योंकि इस संक्रमण का असर बड़ी तेजी से फैल रहा है
    यहां तक कि विश्व संगठन WHO ने कोरोना वायरस को इंटरनेशनल महामारी घोषित कर दी है इस बीमारी को देखते हुए लोगों के मन में कई सवाल पैदा होने शुरू हो गए हैं और देश में डर और भ्रम और कन्फ्यूजन का माहौल बन चुका है इसके चलते देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी नरेंद्र मोदी जी ने रविवार शाम 5 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोरोना वायरस पर सार्क देशों के प्रमुखों से चर्चा की। इस चर्चा में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी, मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोली, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबया राजपक्ष, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, भूटान के प्रधानमंत्री और नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली शामिल हुए। और सभी से एहतियात बरतने की सलाह दी है कोई भी व्यक्ति यदि दूसरे से मिलता है तो उसे एक मीटर की दूरी से नमस्कार करें और इस भारत की प्राचीन परंपरा को पूरा विश्व निभाने और करने लगा है जिससे सामने वाले को सामान भी मिल जाए और कोरोना वायरस के संक्रमण से भी दूर रहे। इसको गूगल जैसी कंपनी ने भी मान लिया है कि विश्व में कोरोना का भय इस तरह की हर 50 सेकंड के बाद लोग कोरोना वायरस के बारे में और उसकी वीडियो देखने में ज्यादा इच्छुक प्रकट कर रहे हैं
    क्या है कोरोना वायरस?
  •     जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इस वायरस को पहले कभी नहीं देखा गया है। इस वायरस का संक्रमण दिसंबर में चीन के वुहान शहर में शुरू हुआ था। कोरोना वायरस, विषाणुओं के एक बहुत बड़े परिवार कता हिस्सा है लेकिन इनमें से सिर्फ 6 विषाणु ही ऐसे हैं जो इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं। नोवेल कोरोना वायरस यानी ये नया वायरस पहली बार सामने आया है जो इंसान को संक्रमित कर रहा है। WHO ने इस नए कोरोना वायरस को COVID-19 नाम दिया है।
  • क्या दवाईयॉ कंपनियां ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए कोई वैक्सीन तैयार की है ?
  •    अब तक ना तो कोई वैक्सीन है और ना बन सकी है जो इस जानलेवा कोरोना वायरस से सुरक्षा प्रदान कर सके। स्टडीज चल रही हैं और अनुसंधानकर्ता इस बारे में रिसर्च कर रहे हैं, दवा निर्माता कंपनियां भी इस बीमारी का इलाज खोजने और इससे बचाव के लिए वैक्सीन बनाने में जुटी हैं। WHO भी कोरोना को लेकर पूरी तरह से सतर्क है और इसका इलाज खोजने की हर संभव कोशिश कर रहा है। फिलहाल इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है ऐहतियात बरतना।
  • क्या स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना से बचने के लिए कोई निर्देश जारी की है ?
  •    स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. इनके मुताबिक, हाथों को साबुन से धोना चाहिए. अल्‍कोहल आधारित हैंड रब का इस्‍तेमाल भी किया जा सकता है. खांसते और छीकते समय नाक और मुंह रूमाल या टिश्पेपर से ढककर रखें. जिन व्‍यक्तियों में कोल्‍ड और फ्लू के लक्षण हों उनसे दूरी बनाकर रखें. अंडे और मांस के सेवन से बचें. जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बचें क्या अपने मुंह को मास्क पहनने से कोरोना को फैलने से रोका जा सकता है ? कोरोना वायरस इतना ज्यादा और इतनी तेजी से फैल रहा है कि हर कोई इससे बचने का तरीका खोजने में लगा है और इसी क्रम में आधी जनता सर्जिकल मास्क पहनकर सड़कों पर घूम रही है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंज प्रिवेंशन CDC की मानें तो मास्क पहनने से इंफेक्शन फैलने का रिस्क कम नहीं होगा। सर्जिकल मास्क पहनने से सिर्फ इंफेक्शन का रिस्क कम होगा इससे बचाव नहीं। प्रिवेंशन का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप अगर उन शहरों में ट्रैवल कर रहे हैं जहां कोरोना वायरस का रिस्क ज्यादा है तो संक्रमित लोगों से दूर ही रहें।
  • किस तरह के लोगों इस बीमारी से बचना चाहिए ?
  •    वैसे तो इस बीमारी से सभी स्वस्थ लोगों को बचना चाहिए यदि किसी व्यक्ति को पहले से अस्थमा या नमोनिया जैसी ठंड लगी रहती है उन व्यक्ति को अपने शरीर का सक्त ध्यान रखना चाहिए खासकर बुजुर्गों में मौत के आंकड़े ज्यादा देखने को मिले है इसके अलावा वैसे लोग जिन्हें पहले से किसी तरह की कोई बीमारी है या फिर वैसे लोग जो लंबे समय से बीमार हैं उनमें भी इस बीमारी या इंफेक्शन होने का खतरा अधिक है।
  • Tuesday, 26 May 2020

    The Global Corona effect

    Due to the corona epidemic, from the beginning of the year 2020, the whole world is struggling to save the lives of its citizens in every region. As the month of March approached, the epidemic took over almost the entire world. By this time, Corona began to show and manifest its horrific form. The main challenge of governments was the protection of their citizens. Therefore, prohibiting all economic, social and religious activities, the Governments world over decided to lock-down their respective countries.
    Police, administration, health workers, sanitation workers, etc. came to be referred as "Corona warriors" came to the forefront to fight this Corona Pandemic, and all the citizens were instructed to stay in their own homes. To prevent the spread of Corona virus, exiting the house was banned. Due to the Corona crisis, the communication revolution played a big role in connecting people locked in their homes to the world and society. Television, telephone, computer, Internet, mobile are the drivers of the communication revolution. This revolution eradicated the distinction of rich - poor, literate - illiterate, village - city, etc., making "mobile phones" in the hands of almost everyone, where the availability of "Internet" and the activation of "social media" all together combined. Television channels have been popular in electronic media since the beginning. Now the craze for Fire Stick, Netflix, and Prime Video etc. is also increasing.
    YouTube channel, along with other activities, has become a beautiful medium to teach many things to the people sitting at home. In view of the "lockdown", all the restaurants, Hotels, street Food stalls are closed hence nobody can go out to eat. People have started using this medium to share Recipies and exchange photographs of the food. This has become a favourite pastime with people. People have started using this medium to demonstrate their abilities in this lock down.
    In this Corona period, the expression "Apna Haath Jagannath" is also becoming popular in every household. In various engagements, buried "hobbies" are becoming vocal and shared to favored friends. Like Singing, Sewing, Stitching, Painting, Drawings, Sketching, Digital Art, sharing old photographs from black/white era (asking “pehchan kaun” questions), sharing riddles etc.
    The patriotism also seems to be awakened during the Corona period. Positive feeling is also arising towards the traditions. Yoga, Pranayama, Ayurveda, vegetarianism, purity etc. are being put into practice. Pleasure and satisfaction are being experienced in life, even without being ostentatious and meeting limited needs. This crisis period has made workers realize the power of the workers, rather than the capitalists. The importance of simple living in villages has been shown. This has exposed the illusion regarding life of cities. Humans have been freed from just being a tool for marketing. Even in this calamity, as usual, with exceptions of course, ordinary citizens have witnessed and practiced social harmony, social service, solidarity with a sense of responsibility. They have lived by restraint and discipline. The understanding and responsible public behaviour has given rise to hope as well. The lockdown caused by "Covid - 19" has negatively impacted the econ The patriotism also seems to be awakened during the Corona period. Positive feeling is also arising towards the traditions. Yoga, Pranayama, Ayurveda, vegetarianism, purity etc. are being put into practice. Pleasure and satisfaction are being experienced in life, even without being ostentatious and meeting limited needs. This crisis period has made workers realize the power of the workers, rather than the capitalists. The importance of simple living in villages has been shown. This has exposed the illusion regarding life of cities. Humans have been freed from just being a tool for marketing. Even in this calamity, as usual, with exceptions of course, ordinary citizens have witnessed and practiced social harmony, social service, solidarity with a sense of responsibility. They have lived by restraint and discipline. The understanding and responsible public behaviour has given rise to hope as well. The lockdown caused by "Covid - 19" has negatively impacted the econo omy around the world. No country is untouched by this situation. Whether it’s a developed nations or underdeveloped. Economic activities like production, distribution etc. has become very limited. As a result, there is also a decrease in employment and purchasing power. Governments have to find solutions on local basis. Certainly, in general all countries, and their citizens, will have to go through difficult times. One has to maintain balance with endurance and patience. Corona's calamity has entangled "humans" in a cycle of restraint, balance, discipline, hope, relaxation, diligence, conviction, faith, antiquity, Archaic, etc., by imprisoning them in homes. This has provided an opportunity to our mother "Nature", to revive the transmission of life.
    The "Panch Mahabhut", of the structure of human construction, engages in the process of cleanliness.
    1.    The Air is getting cleaner
    2. Earth is getting cleaner
    3. The Fire is getting clean
    4. Water is getting clean
    5.   The Sky is getting cleaner

    The "ozone layer hole", caused by global warming, to prevent the sun's harmful rays, is now recovering. Mountain ranges are visible from the cities which are 200-300 Kms away. Beautiful views are seen under the rivers and the ocean. Now we have "Starry Nights", we can see the stars flickering. The clear message of "Corona" is that

                                   "Excess of everything is bad may it be rain or sunshine
                                          Neither is excess of speech or quietness good"


    As humans we should learn from the "Corona Crisis" and make sure that we always maintain a balance in our life with nature. There should be no encroachment in the name of modernization and development. Only then, "human life" can remain happy and satisfied.

    Sunday, 24 May 2020

    Expiration of Another Privy Purse (Section 370)


    Like "Sarve Bhavantu Sukhinah, Sarve Santu Niramaya", (May all be happy, all be free from disease, be a witness to all auspicious and not be a partaker of sorrow. Wish you a nice day) embodied in the concept of human welfare and the concept of "Vasudhaiva Kutumbakam", (entire world is a family) the carrier of this Sanatan culture is, "India". The land holding Himalayas as its crown and the foot washed by the ocean, where, in the wisdom of sages, holds the power to erase the darkness of the entire world. Remnants of ancient historical aristocratic civilization produce a sense of pride. India is a vast storehouse of the world’s oldest scriptures-Vedas; knowledge, literature, art, music, Culture, math, Science and medicine are still visible from place to place. India became a victim of invaders for nearly 1000 years due to his own weaknesses and lack of unity. From 1847 to 1947, the demand for freedom as a source of unity began to arise throughout India. With the partition in 1947, the inhabitants of this vast plot of land gained independence.
    India became an independent country after 15 August 1947 with the merger of various princely states. Through the Constitution, all citizens of India were given equal rights, without any discrimination. As a privilege to the heirs of the merged princely states, a system was provided by the government to provide additional funds in the form of provisos every year.
    By 1969, this privilege system seemed to be a burden on the government. As a result, the then Prime Minister Smt. Indira Gandhi, taking drastic decisions, abolished the privilege of this particular class. The immediate dissatisfaction and opposition of this particular class could not become a big challenge because the general public had nothing to do with it. Similarly, Article 370 did not really have much to do with the ordinary citizens of Jammu and Kashmir, but was only a political weapon. It was used for tricking the local people and provides political protection of some families. With reference to Section 370, during the discussion held in Parliament on 5 and 6 August 2019, it was clearly visible through various facts, that for the last 70 years not only the general public of Jammu and Kashmir but the whole of India was less aware and more confused about Article 370. For example, Dr. Manmohan Singh and Mr. Indra Kumar Gujral, who settled in any part of India (other than Jammu and Kashmir) who came as a refugee from Pakistan in 1947, became the Prime Minister of India. Whereas, about 20 lakh people who settled in Jammu and Kashmir after coming from Pakistan in 1947 did not even get citizenship and did not have the right to adult franchise. What was the reason?
    Naturally, the question arises that was Section 370 used as a part of a bigger conspiracy?




    47 assembly constituency seats are made for the small and sparsely populated areas of the Kashmir Valley and only 43 assembly seats are made for the larger and more populous region of Jammu and Ladakh.
    Can any reason explain this to ordinary citizens?
    If a girl from Jammu and Kashmir marries outside the state, her citizenship ends.
    The claim of his children also ends.
    Whereas, if a girl from Jammu and Kashmir marries a person from Pakistan, then she does not lose her citizenship but her husband also gets citizenship here.

    Can leaders who save and support Section 370 justify these rules even in front of the general public by their arguments? It is very sad to hear that these people, who are educated people of India, confuse them by confining them in their vote bank politics. Instead of general public or country’s interest, the interest of the family and party were paramount. The huge amount of money given by the central government for state development did not reach the village poor. It ended up splitting in the political corridor. Because of this, the gap between the rich and the poor increased and the flame of dissatisfaction and separation kept on burning. Out of many schemes such as Jan Dhan accounts opened across the country, Ujjwala Gas connections to the poor, Ayushman Yojana, Bima Yojana etc. only those schemes benefitted the political class could be implemented. Otherwise, the poor people did not even know what schemes the government is bringing for their well being. In consonance with the spirit of the Indian public, and on the strength of strong political will, Article 370 was finally abolished. Under tricolor, all are the same. There should be Equal duties as well as rights for all under the Indian constitution. Why does anyone get any privileges?
    People will express dissatisfaction and opposition, but if the government soon shows its positive intent in the poor and disturbed areas in remote villages of Jammu and Kashmir through the development of the schools, hospitals, employment generation, markets, etc., local population will get involved and their standard of living will be enhanced. With the improvement of Infrastructural facilities the negativity and dissatisfaction and opposition of local politicians, and separatists will get diluted and will not get support at the local level. As a result, this decision of the Government of India will automatically prove to be correct. With the full participation of the administration, with the cooperation of the army, the upliftment of the village-poor can be done with quickness in a short timeframe. So that the local people feel that 370 years of captivity has been liberated. All of them are of their Prestige, self respect, Culture, in place will feel proud to be part of India.