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जिस प्रकार कमान से छूटा हुआ तीर,यह नहीं देखता कि उसके निशाने पर कौन है । उसी प्रकार "कोरोना विषाणु" ने, अमीर देश- गरीब देश, छोटा देश - बड़ा देश ,गोरा देश - काला देश, ठंडा प्रदेश - गर्म प्रदेश , समाज के सभी वर्गों ,राजा - रंक ,सभी जाति , सभी धर्मों, सभी भाषा, सभी नस्लों को अपने निशाने पर समान रुप से ले रखा है ।
अब यह जिम्मेदारी स्थानीय सरकारों, प्रशासन व समाज की है कि वह मानवता को बचाने के लिए, कितनी गंभीरता के साथ, स्वयं को बचाते हुए ,इस वायरस का सामना करते हुए , इसे निष्फल कर सकें ।
जागरूकता व समग्रता के साथ, प्रशासन से सहयोग एवं सरकारों के दिशा निर्देशों के अनुपालन के माध्यम से, इस "कोरोनावायरस" को निष्फल एवं नष्ट भी कर सकते हैं । इसके साथ ही साथ सामाजिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर आत्म विश्लेषण करके, इस "लॉक डाउन" अवधि में कुछ ना कुछ उत्कृष्ट निकालकर राष्ट्रीय स्तर पर आंशिक योगदान करके गुणात्मक प्रभाव भी पैदा कर सकते हैं ।
निश्चित रूप से , बाजार आधारित अर्थव्यवस्थाओं पर यह संकट बहुत अधिक नकारात्मक प्रभाव डालेगा ।![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgv1BmZREJV9YJ0FqVkBVWgi1t-Oq2PjCMPl8SilQ9tyiwbBEigzS2aIO82tNz7bAhNo7p8NzPHO9OpcZxyFtxYMHM_P45SM3limVrpzB8Q5YlkXsN7IR5k7NcjoRqso-kF8VyeC3MUyQE/s320/lockdown-2.jpg)
वास्तव में "कोरोनावायरस " महामारी संकट के कारण हुए, "लाॅकडाउन" के उपरांत का परिदृश्य भी बहुत सुखद नहीं, अपितु चुनौती भरा ही नजर आता है । प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए आवश्यकता इस बात की है कि, समाज के सभी लोगों को ,इस "लाॅकडाउन" के समय को, अपनी आत्मिक शक्ति को ,सुदृढ़ करने के लिए उपयोग करना चाहिए । ये समय अपने आत्मविश्लेषण में लगाना चाहिए । नकारात्मक विचारों को दरकिनार करके , अपने सकारात्मक , उत्साही विचारों और कार्यों से भर देना चाहिए।
इतने वर्षों से लगातार जीवन की आपाधापी, भागदौड़ मारामारी प्रतिस्पर्धा के चक्र में उलझे इंसान के लिए, यह "लॉक डाउन" उसे समय देता है अपने लिए जीने का, अपने परिवार में रमने का, अपने बच्चों में संस्कार सुदृढ़ करने का क्योंकि इंसान इस वक्त अपने घर में ही है । उसे कहीं जाने की बाध्यता नहीं है ना ही अचानक किसी के आने पर उसे अपनी दिनचर्या बाधित करने की जरूरत है ।
कहीं किसी दिखावे की जरूरत भी नहीं है। जो है, जैसा है, जितना है , उसमें परेशानी भी नहीं है । संयम और संतुलन से, संतोष भी प्राप्त हो जाता है "जान है तो जहान है " इस मूलमंत्र को जहन में रखते हैं , तो कभी कोई चीज या बात पर कोई असंतोष हो, छोटी-मोटी परेशानी हो , तो वह भी छूमंतर हो जाती है । "लॉक डाउन" ने समय दिया है, दोस्तों रिश्तेदारों से गप्पे लड़ाने के लिए , भूले बिसरे को याद कराने के लिए , अपने शौक को निखारने , रुचियों को संवारने के लिए, नई-नई चीजें और गुस्ताखियां करने के लिए, संपूर्ण विश्व को देखने और गहराई से समझने के लिए । "लॉक डाउन" सिखाता है कि, वास्तव में श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए, संयम, संतुलन, अपनापन जैसे सद्गुण अधिक महत्वपूर्ण है । बाजारीकरण की अंधी दौड़ में ,सधे कदम से आगे बढ़ कर, स्वयं की पहचान कायम करना आना चाहिए।
"लॉक डाउन" में कार्यरत स्वास्थ्य-कर्मचारी, सुरक्षा-कर्मचारी, मूलभूत सेवा-कर्मचारी ,स्वच्छता-कर्मचारी ,मीडिया-कर्मचारी आदि, "कोरोना योद्धाओं" के प्रति ,अधिक सम्मान का भाव, आज के हर नागरिक के दिल में, बढ़ रहा है ।
भारत को इस महामारी से बचाने के लिए 25 मार्च से संपूर्ण "लॉकडाउन" किया गया है अर्थात सभी को अपने-अपने घरों में रहने के लिए कहा गया है। 25 मार्च से शुरू हुए नवरात्रों में जनसाधारण अपने-अपने सद्भाव - सदाचार में, थोड़ी-थोड़ी भी वृद्धि करता है तो निश्चित रूप से सकारात्मक ऊर्जा में बहुत अधिक गुणात्मक वृद्धि होगी और नकारात्मक कोरोना का क्षरण शीघ्र अति शीघ्र होगा ।
इन "कोरोना योद्धाओं" का मनोबल बढ़ाने के लिए, यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने सद्गुणों को सुदृढ़ करेगा तो "कोरोनावायरस" संकट जल्द ही समाप्त भी होगा और किसी भी तरह का अधिक नुकसान भी नहीं कर पाएगा।
supherb
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