Wednesday, 17 June 2020

पर्यावरण और हम


400-500 साल पहले हुई, यूरोपीय औद्योगिक क्रांति ने, पिछले 100 वर्षों से संपूर्ण विश्व के मानव जीवन को, बहुत ही सुविधा संपन्न बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । किंतु मानवीय लापरवाही के चलते, अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन गैसों ने, पर्यावरण को दूषित करते हुए, मानव जीवन के लिए ही चुनौती प्रस्तुत कर दी है। इस स्थिति से निबटने के लिए विश्व पर्यावरण संरक्षण विषय पर , विश्व स्तरीय राष्ट्राध्यक्षीय सम्मेलनों में , कुछ चिंता ,कुछ समस्याएं और समाधान पर चर्चा और रूपरेखा की प्रगति देखी जाती है । संतोष की बात यह भी है कि, भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों और विकासशील देशों के हितों को ध्यान में रखकर कार्यक्रमों की चर्चा भी की जाती है यही बात, अंतरराष्ट्रीय उच्च स्तरीय संगोष्ठी, पर्यावरण के प्रति संजीदगी के साथ प्रतिबद्धता को भी , प्रतिपादित करती है

वास्तव में अब हमें, हम सबको , अपनी धरती - अपना भविष्य सुरक्षित रखने की दृष्टि से, अंतरराष्ट्रीय स्तर, सरकारी स्तर के साथ-साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी, अधिकतम प्रयास करने जरूरी हो गए हैं
दिल्ली में जनवरी के शुरू के दिनों में हमेशा ही कड़ाके की ठंड पड़ती है । दिल्ली को फैशन की राजधानी भी कहा जाता है, क्योंकि सर्दी , गर्मी और मानसून तीनों ॠतुएं, यहां पर फैशन में भी पूर्णतया दृष्टिगोचर होती है । लेकिन यहां भी मौसम का मिजाज अब अबूझ सा हो गया है बारिश के मौसम का तो अब कुछ समझ ही नहीं आता है सावन - भादो तो बूंदों को तरस से जाते हैं, और पूरे बरस जब तब बादल बरस भी जाते हैं, फिर चाहे खड़ी फसल बर्बाद हो या फिर उफनते तटबंधों से जनजीवन बेज़ार हो

जैसे कभी चेन्नई में ,कभी केरल में बारिश से भारी तबाही होती है या कहीं सूखे की मार पड़ जाती है
कुछ समय पहले समंदर की गहराई में अनजानी उथल-पुथल के चलते, फिन प्रजाति के 100 से अधिक अस्वस्थ और चोट- ग्रस्त , व्हेल मछली तमिलनाडु के तूतीकोरिन तट पर आ गये , मछुआरों और प्रशासन के अथक प्रयासों के बावजूद भी 45 व्हेल मछलियों को बचाया न जा सका

।यह सब, प्रकृति मानक हम सभी को संदेश देकर सजग कर रहे हैं कि, अब इसी क्षण से, स्वयं संकल्प लें कि आधुनिकता के इस दौर में सुविधाजनक व्यवस्थाओं, उपकरणों का उपयोग करते हुए हमने प्रकृति को जो नुकसान पहुंचाया है, उसकी क्षतिपूर्ति के लिए हम भी कुछ कर ले करने को तो बहुत बड़े-बड़े काम हैं किंतु शुरुआत व्यक्तिगत रूप से छोटे-छोटे प्रयासों से भी ,सम्मिलित रूप से बड़ा प्रभाव पैदा कर सकती है । जैसे...
1. प्रातःकाल अग्निहोत्र
2. मंत्र उच्चारण
3. रीसाइकिल रीयूज रिड्यूस
4. बिजली पानी की बचत
5.  फल सब्जियों के छिलकों से एंजाइम और खाद बनाकर इस्तेमाल
6. प्लास्टिक और थर्मोकोल का कम से कम उपयोग
7. कम से कम एक पौधा प्रति माह लगाकर सींचने काम करें
8. अपने फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप में पर्यावरण संबंधी चर्चा और स्वयं की कार्यों की समीक्षा काम करना शुरू करें
इसी तरह से अन्य बहुत से काम किए जा सकते हैं। ताकि हम अपने बच्चों और उनके बच्चों के लिए भी शुद्ध पर्यावरण का आधार देने में सक्षम होंगे आधुनिक दौर की 21वीं शताब्दी में ही, अति पिछड़े क्षेत्र के साधारण से ग्रामीण "दशरथ मांझी" ने जब ठाना तो पहाड़ काट डाला जरूरत है , तो बस इसी क्षण, संकल्प लेकर कुछ काम शुरू करने की .........

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