Wednesday 24 June 2020

सिंधु महात्तम

पुरातन , निरंतर , विस्तार,

वृषभ स्वरूपा, पौराणिक से प्रत्यक्ष,
सहस्त्राब्दियों की साक्षी, सभ्यताओं की जननी,
वैदिक सभ्यता, सिंधु घाटी सभ्यता या मोहनजोदड़ो - हड़प्पा,
मानव - मात्र के उत्थान - पतन को संभालती हुई
शांत तो मां के आंचल जैसी , उफनती तो आसमां गुजांती,
मजहबी दीवारों को तोड़, भौगोलिक सीमाओं को छोड़,
निर्मल , निश्छल, अविरल,
पीढ़ियों को सींचती आ रही है,
सिंधु नदी।

लगभग 6 -7 हजार वर्षों से, पौराणिक काल व ऋग्वेद में वर्णित, "सप्तसिंधु", परुषनी, शुतुद्री, असकिनी, वितास्ता, विपास (रावी, सतलुज, चिनाब, झेलम, व्यास ) सरस्वती, सिंधु - सिन्धु सभ्यता और हिंदू संस्कृति की पोषक बनी। सिंधु नदी के धरातल पर ही, हिंदू संस्कृति पनपी। भारतवर्ष की पश्चिमी सीमा पर, बहती सिंधु को, फारसी में "स" के स्थान पर "ह" बोलने के कारण, हिंदू प्रचलित हो गया और सिंधु नदी के तट पर बसा हुआ क्षेत्र हिंदुस्तान कहलाया । कैलाश पर्वत की, मानसरोवर झील के निकट से, अरब सागर तक फैली, सिंधु की उर्वर धरा पर, मानव रूपी अंकुरित बीज ने, शनै: शनै: लहलहाना सीखा। जगदंबा सदृशा इस जीवनदायिनी सिंधु की आशीशों के साथ, मानव ने, काल-कवलित थपेड़ों के बीच, गिर-गिर कर, उठना और बढ़ना सीखा ।
ऐतिहासिक रूप से, पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता, प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। मानव विकास के दौर में, सिंधु नदी की सभ्यता के उत्खनन में, जो अवशेष व प्रमाण प्राप्त हुए हैं, वह उस काल के, सिंधु पुत्रों की उन्नत बौद्धिक सोच, संयोजन व उत्कृष्टता का प्रतीक है। विश्व स्तर के इतिहासकारों एवं पुरातत्त्ववेत्ताओं का मानना है कि, ईसा से 3000 से 7000 साल पूर्व, जो सभ्यता थी, वह वैदिक सभ्यता कही गई है। क्योंकि यही समय, वेदों की रचना का माना गया है, तथा यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे विकसित थी। इस समय मानव पूर्ण रूप से विकसित भी था, शासन व्यवस्था सुदृढ़ थी। धर्म का अपना महत्व था। महिलाएं शिक्षित भी थी, सम्मानित भी थी। लोपामुद्रा , गार्गी , पालमा आदि विदुषियां वेदों की ज्ञाता थी। कृषि, पशुपालन मुख्य व्यवसाय था । सोना, चांदी ,तांबा, कांसा इत्यादि धातुओं का प्रयोग होता था। बैल गाड़ी, घोड़ा गाड़ी, नाव आदि यातायात के प्रमुख साधन थे। इतनी उन्नत व्यवस्था सिंधु के आंगन में अवस्थित थी ।
काल की गति के कारण, सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद भी, फिर से सिंधु सृजन जारी रहा। इन 6 - 7 हजार वर्षों में फिर से, "सिंधु" ने, अपने आंचल को विस्तृत करते हुए, वात्सल्य भरे प्यार और दुलार से, अपनी संतानों को आधुनिक सभ्यता तक प्रशिक्षित कर दिया है ।
वर्तमान में एशिया की, सबसे बड़ी नदी के रूप में," सिंधु नदी" तिब्बत से निकलकर , "भारत" को पहचान देकर , पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बनी हुई है ।
भारत - पाकिस्तान के बंटवारे के कारण, 1960 में, सिंधु के पानी को लेकर समझौता हुआ। पाकिस्तान के सामान्य नागरिकों के हितों के मद्देनजर, अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत, भारत ने, अपनी संस्कृति और सभ्यता की जननी पर, अधिकार न जताकर, केवल भाव -श्रद्धा, सत्कार - आभार, व्यक्त करते हुए, ममता का उद्गार प्राप्त किया।
सिंधु वात्सल्य अनुभूति करते हुए 1996 में तत्कालीन गृहमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी जी ने सिंधु दर्शन किए। इसके बाद 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने सिंधु दर्शन महोत्सव का उद्घाटन किया। तब से प्रतिवर्ष जून के दूसरे पखवाड़े में जम्मू कश्मीर के संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय द्वारा, स्वतंत्र भारतीयों को, सिंधु की महत्ता, निश्छलता, निर्मलता और अद्वितीयता की अनुभूति के लिए, "सिंधु दर्शन महोत्सव" का आयोजन किया जाने लगा।

हर, भाषा ,जाति, क्षेत्र इत्यादि के भेदभाव को दूर करते हुए, अपने उद्गम की मूल संस्कृति से जुड़ने के लिए, "लेह लद्दाख" में, "सिंधु तट", के पर देश के सभी राज्यों की सांस्कृतिक धारा, अपनी प्राचीनतम व उन्नत सभ्यता की धरा पर, मनमोहक छटा बिखेरती है। सिंधु दर्शन महोत्सव में, प्रतिवर्ष उत्साही पर्यटकों की, भागीदारी भी बढ़ती जाती है। पर्यटक यहां की सुंदरता और शुद्धता से तो, अभिभूत होता ही है इसके अलावा सिंधु की गौरवशाली परंपरा को भी, आत्मसात करता हुआ गौरवान्वित होता है।
इस बार "लेह - लद्दाख" क्षेत्र को , केंद्र शासित प्रदेश बनने के कारण, इस महोत्सव का और अधिक धूमधाम से आयोजन करने का प्रयास था। किंतु कोविड-19 के कारण, सभी राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक गतिविधियों पर अंकुश लग गया है। लेकिन "सिन्धु नदी" की पौराणिकता और महत्ता पर लेश मात्र भी असर नहीं पड़ा है।

Wednesday 17 June 2020

पर्यावरण और हम


400-500 साल पहले हुई, यूरोपीय औद्योगिक क्रांति ने, पिछले 100 वर्षों से संपूर्ण विश्व के मानव जीवन को, बहुत ही सुविधा संपन्न बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । किंतु मानवीय लापरवाही के चलते, अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन गैसों ने, पर्यावरण को दूषित करते हुए, मानव जीवन के लिए ही चुनौती प्रस्तुत कर दी है। इस स्थिति से निबटने के लिए विश्व पर्यावरण संरक्षण विषय पर , विश्व स्तरीय राष्ट्राध्यक्षीय सम्मेलनों में , कुछ चिंता ,कुछ समस्याएं और समाधान पर चर्चा और रूपरेखा की प्रगति देखी जाती है । संतोष की बात यह भी है कि, भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों और विकासशील देशों के हितों को ध्यान में रखकर कार्यक्रमों की चर्चा भी की जाती है यही बात, अंतरराष्ट्रीय उच्च स्तरीय संगोष्ठी, पर्यावरण के प्रति संजीदगी के साथ प्रतिबद्धता को भी , प्रतिपादित करती है

वास्तव में अब हमें, हम सबको , अपनी धरती - अपना भविष्य सुरक्षित रखने की दृष्टि से, अंतरराष्ट्रीय स्तर, सरकारी स्तर के साथ-साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी, अधिकतम प्रयास करने जरूरी हो गए हैं
दिल्ली में जनवरी के शुरू के दिनों में हमेशा ही कड़ाके की ठंड पड़ती है । दिल्ली को फैशन की राजधानी भी कहा जाता है, क्योंकि सर्दी , गर्मी और मानसून तीनों ॠतुएं, यहां पर फैशन में भी पूर्णतया दृष्टिगोचर होती है । लेकिन यहां भी मौसम का मिजाज अब अबूझ सा हो गया है बारिश के मौसम का तो अब कुछ समझ ही नहीं आता है सावन - भादो तो बूंदों को तरस से जाते हैं, और पूरे बरस जब तब बादल बरस भी जाते हैं, फिर चाहे खड़ी फसल बर्बाद हो या फिर उफनते तटबंधों से जनजीवन बेज़ार हो

जैसे कभी चेन्नई में ,कभी केरल में बारिश से भारी तबाही होती है या कहीं सूखे की मार पड़ जाती है
कुछ समय पहले समंदर की गहराई में अनजानी उथल-पुथल के चलते, फिन प्रजाति के 100 से अधिक अस्वस्थ और चोट- ग्रस्त , व्हेल मछली तमिलनाडु के तूतीकोरिन तट पर आ गये , मछुआरों और प्रशासन के अथक प्रयासों के बावजूद भी 45 व्हेल मछलियों को बचाया न जा सका

।यह सब, प्रकृति मानक हम सभी को संदेश देकर सजग कर रहे हैं कि, अब इसी क्षण से, स्वयं संकल्प लें कि आधुनिकता के इस दौर में सुविधाजनक व्यवस्थाओं, उपकरणों का उपयोग करते हुए हमने प्रकृति को जो नुकसान पहुंचाया है, उसकी क्षतिपूर्ति के लिए हम भी कुछ कर ले करने को तो बहुत बड़े-बड़े काम हैं किंतु शुरुआत व्यक्तिगत रूप से छोटे-छोटे प्रयासों से भी ,सम्मिलित रूप से बड़ा प्रभाव पैदा कर सकती है । जैसे...
1. प्रातःकाल अग्निहोत्र
2. मंत्र उच्चारण
3. रीसाइकिल रीयूज रिड्यूस
4. बिजली पानी की बचत
5.  फल सब्जियों के छिलकों से एंजाइम और खाद बनाकर इस्तेमाल
6. प्लास्टिक और थर्मोकोल का कम से कम उपयोग
7. कम से कम एक पौधा प्रति माह लगाकर सींचने काम करें
8. अपने फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप में पर्यावरण संबंधी चर्चा और स्वयं की कार्यों की समीक्षा काम करना शुरू करें
इसी तरह से अन्य बहुत से काम किए जा सकते हैं। ताकि हम अपने बच्चों और उनके बच्चों के लिए भी शुद्ध पर्यावरण का आधार देने में सक्षम होंगे आधुनिक दौर की 21वीं शताब्दी में ही, अति पिछड़े क्षेत्र के साधारण से ग्रामीण "दशरथ मांझी" ने जब ठाना तो पहाड़ काट डाला जरूरत है , तो बस इसी क्षण, संकल्प लेकर कुछ काम शुरू करने की .........

Thursday 11 June 2020

Being very big and large India is vulnerable to natural disasters.


In India's policy framework Disaster management occupies an important place, as most affected people by disaster poor, they are India's predominant population. A roadmap i.e. National Disaster Framework is early warning systems, disaster prevention strategy, preparedness and response, disaster mitigation, and human resource development. This roadmap has been shared by Ministries and Departments of the Government of India with all the State Governments and Union Territory Administrations. The Disaster Management Act was passed by the Lok Sabha on 28 November 2005, and by the Rajya Sabha on 12 December 2005.

Types of Disaster

  • Fire is an exothermic chemical process of combustion, that releases heat, light and rapid oxidation of a material. Fire can cause physical damage through burning. Fire in its common form can result in the conflagration. The hazard to life and property are the negative effects of fire, it also includes, atmospheric pollution, and water contamination. The loss of fertility of the soil is due to the loss of nitrogen caused by a fire. Firefighting services are provided to extinguish or contain uncontrolled fires, in most developed areas. Firefighting apparatuses are used by trained firefighters, such as water mains and fire hydrants or A and B class foam depending on the source of the fire. Depending on the type of fire damage that occurred, suitable restoration methods and measures should be employed. The safest way to restore fire damaged property is to engage a trained, experienced and certified professional fire damage restoration specialist as they can speed up repairs, whether for individuals or institutions.
  • Flood may occur as an overflow of water from water bodies that submerges land. Floods may occur in rivers as the rate of flow exceeds the capacity of the river channel. Homes and businesses are often damaged if they are in the natural flood plains of rivers. Analysis, engineering are important aspects of Planning for flood safety.
    •  1. Observation analysis data on previous and present flood heights and inundated areas

    •  2. Analysis of statistical, hydrologic, and hydraulic model.

    •  3. For future flood preparedness we should map the low lying areas and flood heights.

    •  4. Planning and regulation of long term land use.

    •  5. To withstand and control flooding engineering design and construction of structures are the keys.

    • 6. Emergency-response planning, intermediate-term /short term monitoring, forecasting and warning systems
    Mankind has been for the past six millennia trying to understand, manage the mechanisms at work in flood plains. Areas can be converted into parks and playgrounds that can tolerate occasional flooding. Builders and developers can be regulated to retain storm water on site and buildings should be elevated, floodwalls and levees, erected or designed to withstand temporary flooding. Property owners can also be encouraged to invest in solutions.
  • Mesocyclone is a vortex of air, 2.0 kilometers (1.2 mi) to 10 kilometers (6.2 mi) in diameter (the mesoscale of meteorology), within a convective storm. Air rises and rotates around a vertical axis, usually within the same direction as low-pressure systems in both the northern and southern hemispheres. They’re most frequently cyclonic, that is, related to a localized low-pressure region within a supercell.
  • Toronado might be a violently rotating column of air that's connected with both the surface of the earth and heavy rain-bearing, condition of icing, lighting, hail storm, extreme wind with massive turbulence comprising the towering clouds of a cumulonimbus or, in rare cases, rock bottom of a cumulus.
  • Whirlwind may be a strong, well-formed, and comparatively long-lived whirlwind, starting from small (half a meter wide and a couple of meters tall) to large (more than 10 meters wide and quite 1000 meters tall).
  • Waterspout may be a columnar vortex forming over water that’s, in its commonest form, a non-supercell tornado over water that's connected to a cumuliform cloud. A gentle vortex over calm water or wetland made visible by rising water vapor.
  • Fire Whirl also colloquially referred to as a fireplace devil, fire tornado, firenado, or fire twister – may be a whirlwind induced by a fireplace and sometimes made from flame or ash.

  • CYCLONES aren't unique to Earth. Cyclonic storms are common on Jovian planets, like the tiny Dark Spot on Neptune. It's about one third the diameters of the good Dark Spot and received the nickname "Wizard's Eye" because it's like an eye fixed. Mars has also exhibited cyclonic storms. Jovian storms just like the Great Red Spot are usually mistakenly named as giant hurricanes or cyclonic storms. However, this is often inaccurate, because the Great Red Spot is, in fact, the inverse phenomenon, an anticyclone.

  • Tsunami is a series of waves, generated by the displacement of water with periods ranging from minutes to hours. Very High wave heights of tens of meters can be generated. The destructive power of a Tsunami can be huge, and they can affect entire ocean basins, the impact of tsunamis is limited to coastal areas. Among the natural disasters in human history, the Tsunami in Indian Ocean tsunami in the year 2004 was the deadliest. In the 14 countries bordering the Indian Ocean, 230,000 people were killed or went missing. Tilly Smith was in Thailand, having learned about tsunamis in school, told her parents that a tsunami might be imminent. They warned people around them thereby saving many of lives. Tilly Smith attributed her geography teacher in school. Even if the location and magnitude of an earthquake are known, it is difficult to precisely predict a tsunami. Despite that, there are some warning signs of an approaching tsunami, and automated systems can provide warnings immediately after an earthquake in time to save lives. One of the finest systems uses bottom pressure sensors, attached to buoys, which ceaselessly inspect the pressure of the water column. In the Pacific Ocean and the adjoining land masses computers are used to assist in analyzing the tsunami risk of every earthquake that occurs in that region. Usually within minutes of the arrival time computer models can predict tsunami arrival. It is mandatory to practice emergency services for the population, local authorities, and government.Some zoologists hypothesize that some animal species have the ability to sense subsonic from an earthquake or a tsunami. Monitoring the behavior of animals could provide advance warning of earthquakes and tsunamis.
  • Earthquake is the shaking of the surface because of the movement of tectonic plates under the surface of the earth thereby releasing of energy in the Earth's lithosphere hence creating seismic waves. Earthquakes manifest themselves by shaking and displacing or disrupting the ground an earthquake's point of rupture is called its focus or hypocenter. The epicenter is the point at ground level directly above the hypocenter from where the waves originate. They take place in the 40,000-kilometre-long, which for the most part bounds the Pacific Plate (90%, and 81% of the largest). Massive earthquakes tend to occur along the Himalayan Mountains. There is the growth of mega-cities such as Mexico City, Tokyo, and Tehran in the areas of high seismic risk; seismologists warn that a single quake may claim the lives of millions of people. Earthquake engineering foresees the impact of earthquakes on buildings and other structures. It designs structures that can minimize the risk of damage. Individuals can also take preparedness steps, and being educated about what to do when the shaking starts.
  • Under section 6 of the Act it is responsible for laying "down guidelines to be followed by the State Authorities in drawing up the country Plans". Under the aegis of Ministry of Home Affairs, National Disaster Management Authority (NDMA), performs the primary purpose of capacity-building in disaster resiliency and crisis response disaster management coordinated response to natural or man-made disasters.

    Wednesday 10 June 2020

    पांच पर्यटन स्थल प्रतिवर्ष


    लाल किले की प्राचीर से, भारत के कर्मठ प्रधानमंत्री ने, भारत की समस्त जनता, 130 करोड़ लोगों से, आव्हान किया है, कि वे 1 वर्ष में कम से कम 5 स्थलों का भ्रमण करें। निश्चित ही, माननीय प्रधानमंत्री जी के इस आह्वान के पीछे कई कारण काम कर रहे हैं । जैसे भ्रमण के माध्यम से मिलने वाली पारिवारिक खुशी, खुशी से अतिरिक्त सकारात्मक ऊर्जा, सकारात्मक ऊर्जा से प्रभावी कार्य क्षमता, भावनात्मक एकात्मकता, स्थानीय रोजगार में वृद्धि एवं स्थानीय पर्यटक स्थल की अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ता। ट्रेन, बस, होटल पर्यटन उद्योग इत्यादि में मुद्रा निवेश से रोजगार एवं अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।
    बच्चों ने जब सुना कि 1 साल में 5 स्थल, घूमने जाने के लिए मोदी जी कह रहे हैं। तो वह तो मारे खुशी के उछल पड़े। अभी तो मुश्किल से एक या ज्यादा से ज्यादा दो बार ही घूमने जा पाते हैं किंतु अब तो प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि आप साल में 5 स्थल, अवश्य भ्रमण करें । तो बच्चे कैलेंडर में घूमने का कार्यक्रम बनाने में जुट गए। भारतीय परिप्रेक्ष्य में पर्यटन को समझने के लिए , आय स्तर को भी ध्यान में रखना पड़ेगा। उच्च आय वर्ग ,मध्यम आय वर्ग, निम्न आय वर्ग, के रूप में, भारतीय जनसंख्या का विभाजन किया जाता है । अति उच्च आय वर्ग, तो केवल लगभग 1-2% ही है। यह वर्ग, भारत में उत्पादन, रोजगार इत्यादि में तो , अपना योगदान देता है, और यहीं से अपनी आय भी प्राप्त करता है । किंतु अपवादों को छोड़कर, खर्च करने की प्रवृत्ति की दृष्टि से, यह वर्ग विदेशी अर्थव्यवस्थाओं को पुष्ट करता है, क्योंकि अधिकतर खरीदारी विदेशों में करता है या फिर विदेशी वस्तुओं को खरीदने में अपनी शान समझता है।
    लगभग 75-76% जनसंख्या मध्यम वर्ग में आती है और 22-23 प्रतिशत जनसंख्या निर्धन वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है।
    मध्यमवर्ग को पुष्ट किया जाता है, तो उसका कुछ हिस्सा, निम्न वर्ग तक भी पहुंचता है, क्योंकि जीवन और समाज के सभी स्तर एवं क्षेत्र परस्पर एक दूसरे से संबद्ध हैं। उच्च आय वर्ग, अपनी मर्जी का मालिक होता है । निम्न आय वर्ग, जीने की मूलभूत जद्दोजहद के बीच पिस रहा होता है। मध्यमवर्ग, अपने आचार, विचार, व्यवहार से, राष्ट्र व समाज को प्रभावित, परिभाषित, एवं परिलक्षित करता है।
    उन्नत पर्यटन की दृष्टि से मध्यमवर्ग बहुत बड़ी भूमिका निभाने की क्षमता रखता है।
    इस वर्ग के, बच्चों की बातों को भी, महत्व मिलता है। बच्चों के भविष्य के प्रति भी, अतिरिक्त सजगता की प्रवृत्ति होती है। इस बड़े मध्यम वर्ग को भी, तीन वर्गों में सहज विभाजित किया जा सकता है। उच्च मध्य वर्ग, मध्यम मध्य वर्ग एवं निम्न मध्यवर्ग। उच्च मध्यम वर्ग स्तर के लोग, पर्यटन उद्योग को अच्छा मोबिलाइज करने की क्षमता रखते हैं । सितारा सुविधाओं का उपयोग करते हुए, सभी पर्यटक स्थलों पर भी, साफ-सफाई, सौंदर्य, सुविधाओं की अपेक्षा भी रखते हैं। नए नए पर्यटन स्थलों की खोज में रहते हैं। सामान्यतया सौंदर्य एवं सुविधाओं के आधार पर, पर्यटक स्थल का चुनाव करते हैं। मध्यम मध्य वर्ग का प्रतिशत भी यहां काफी बड़ा होता है। माना जाता है कि जनसंख्या के हिसाब से आधी से अधिक आबादी इसी हिस्से में आती है। मध्यम मध्य वर्ग की अपेक्षाएं तो उच्च स्तर की होती हैं किंतु आर्थिक संसाधन सीमित होने के कारण वह समायोजन करने की प्रवृत्ति भी रखता है। इच्छाओं और शौक को, नियोजित करते हुए, जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान देता है।
    पर्यटन उद्योग द्वारा इस वर्ग को, विभिन्न योजनाओं, स्कीमों इत्यादि के माध्यम से, प्रोत्साहित किया जा सकता है । सस्ते पर्यटन लोन, आकर्षक टूर पैकेजेज आदि उपलब्ध हों, तो यह आधी से अधिक आबादी वाला वर्ग, सकारात्मक क्रांतिकारी उछाल आने की क्षमता रखता है, और अर्थव्यवस्था को जमीनी स्तर पर सुदृढ़ आधार दे सकता है। सरकार द्वारा, सरकारी कर्मचारियों को, प्रति 4 वर्ष में, "एल. टी. सी." की सुविधा दी जाती है। इसे, कुछ शर्तों के साथ, प्रतिवर्ष भी किया जा सकता है । प्राइवेट कंपनियों में भी, इस तरह की सुविधा का प्रावधान, प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। विभिन्न योजनाओं एवं सुविधाओं का लाभ उठाते हुए भ्रमण एवं पर्यटन के माहौल में निम्न मध्यम वर्ग भी अपनी क्षमताओं के अनुरूपआकर्षित होकर मुद्रा विनिमय में अपना योगदान दे सकता है।
    पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए समग्र रूप से कुछ बुनियादी तथ्यों पर भी काम करना आवश्यक है ।
    1. 1. सप्ताहांत पर , रेलगाड़ियों में अतिरिक्त बोगियों की व्यवस्था हो, ताकि तुरंत कार्यक्रम बनने पर भी , जहां भी ,परिवार जाना चाहें, उन्हें आरक्षण मिल सके । ब्रेकजर्नी की, भी सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए । सड़कें भी चुस्त-दुरुस्त हों।
    2. 2. पर्यटन स्थलों पर , साफ-सफाई , बिजली, पानी और रहने की पर्याप्त व्यवस्था हो‌।
    3. 3. पर्यटन स्थल पर, स्थानीय लोक व्यवहार , मेले - ठेले, खानपान, हस्त - शिल्प इत्यादि स्थानीय अर्थव्यवस्था को, सुदृढ़ आधार प्रदान करते हैं । उनका भी प्रचार-प्रसार होना ही चाहिए।
    4. 4. पर्यटन के माध्यम से मनी ट्रांजैक्शन बहुत ज्यादा होता है। जो इकोनामी को स्ट्रांग बनाता है । स्वरोजगार के भी बहुत से क्षेत्र खुल जाते हैं।
    5. 5.विभिन्न पर्यटन स्थलों के , इतिहास, वास्तु, इत्यादि को ध्यान में रखते हुए 10 से 15 मिनट का वीडियो बनवा कर, स्थानीय संस्कृति , हस्तशिल्प, खानपान की झलक दिखाते हुए ,उस स्थल को प्रमोट किया जाना चाहिए । यह काम पर्यटन मंत्रालय द्वारा सहज ही किया जा सकता है।
    भारतीय संस्कृति में, गंगा स्नान, तीर्थ यात्राएं, आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ, सामाजिक और आर्थिक पक्ष को भी, मजबूत करने का कार्य करती रही है। आधुनिक समय में भी यह तीर्थ यात्राएं, पर्यटन उद्योग की मजबूत नींव, के रूप में कार्य कर रही हैं । इसलिए यहां भी, आधुनिक सुख सुविधाओं का ध्यान रखा जाना अति आवश्यक है। प्रधानमंत्री के आह्वान से, निश्चित ही बच्चों को, उत्साह एवं परिवारों को, प्रोत्साहन मिलेगा । पर्यटन संबंधी बुनियादी सुविधाओं में सुधार होगा । सामाजिक एवं आर्थिक पक्षों में मजबूती के साथ, एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना के अनुरूप, समरसता एवं समरूपता को आत्मसात करते हुए, नई ऊर्जा उत्पन्न होगी।

    Tuesday 9 June 2020

    The Haunted City of Bhangarh


    The city of Bhangarh which once laded a kingdom has now been rendered as a pile of broken rocks, cracked structures and nothing but silence and loneliness all around. City which once chirruped owing to innumerable people and roared being ruled by valiant emperors has turned as lifeless as a long forgotten crypt. Enveloped by an abominable lull and an atmosphere of horror and mystery.
    We stepped into the fort through a gate which was made between a long and high walled boundary, resembling the famous Great Wall of China. The ends of the wall could not be seen as they spread till eternity. Beyond the entry was a guided granite stoned path which went through like a corridor between historical ruins. The ruins of which once was the main bazaar or market of the city. This quite long path ended on a much higher and larger gate. Inside the gate was vast open grassland. On the left were some wilderness, a tomb and a pond; on the right was a temple.
    Temple which was decent sized but, was mounted on a very high base. One had to climb around 50 stairs to reach to that height. The temple being historical was a simple stoned temple with no glittery idols, jewellery or decorations. It had a bell and some carvings on the wall. It very much resembled the stereotypical temples shown in Hindi movies and soaps.
    On the front was the main building of the fort which was as high as the mountain behind it. Apparently only the lower three floors of the fort have remained. The top four floors have fallen off. The view from the third floor of the fort was immensely beautiful, serene and tranquil. With no human encroachment to be seen. The limits of the view extended beyond the boundaries of the city till infinity. On the right side, above the fort, on the mountain, was a small tomb which is the home to the tantric’s grave who cursed the once lively city of Bhangarh. It is believed that no one can go to that tomb. And whoever does, does not return.
    The story of this tantric named Singhia is also a bit peculiar. The tantric was is love with the eighteen years old princess of Bhangarh, Ratnavati. When she was to get married, the tantric got to know that he cannot even see her, let alone meet her. The desperate tantric casted a spell on the oil being bought by the princess’ maid for her, so that she would get mesmerized by him and would marry him. However, the princess got to know about this and poured the oil on a rock. The rock rolled towards him and crushed the tantric to death. While Singhia was dying, he cursed the palace with the death of whoever dwelt within it. Soon after Ratnavati died in a war and the city was doomed. People also have said to see the princess’ spirit moving in the fort, in the night.
    It was already beyond sunset when we reached this point and since it is not to be populated by visitors after 6pm, the fort commenced to get evacuated. We hid in to escape ourselves from getting caught and to stay there after dark. We somehow managed. After the tourists left, some people and priests gathered to perform some ritualistic proceedings and to chant mantras to bless the fort and to stop the prophecy from harming anyone. Everyone gathered at a small worship spot next to the wilderness.
    Amidst of these terror filled proceedings were the beautiful peacocks which flew ecstatically from one tree to another, mewing incessantly. Hearing them carefully, one could compare their sound to someone’s screaming. And as it has been evident from the past, people have, many times, been fooled because of their mewing. Mesmerized by the beauty of these peacocks, the sound of chanting mantras and chirruping of the birds which returned to their nests after a tiring day, everything seemed to get slow. With time, everything got silenced and paused.
    We sat under a tree and it got darker and darker. Fretting the hooligan monkeys, we talked of every random thing, got pictures clicked and also met another group of people who had come from Delhi for the same purpose and planned to stay there at night. We didn’t even realize when it turned completely dark. It was around 9 in the night. And we had no food or water with us. Our thirst and hunger forced us to move out of the fort. Though we did not encounter any unusual happening and reacted rationalistically, there was still an aura of arcane in our minds. Something which could be seen from our sixth sense. Mystery still prevailed and atmosphered our minds.
    As we moved out of the gate, darkness appeared to get a little less. The moon shined in full mood above the haunted and silenced hills of Bhangarh. The white light seemed to bandage the pained history of the cursed city. The granite path of the bazaar, through which we entered, reflected the twilight and our path shined. To our much surprise the path ended at a god’s idol resurrected at the main gate of the fort. The small tomb in which the idol was placed was lit with earthen lamps and smelled of burning incense sticks. The god’s idol too radiated an essence of horror and terror.

    Monday 8 June 2020

    भारतीय नारी


    भारतीय संस्कृति में, सर्व गुण सम्पन्न शक्ति स्वरूपा माँ जगदम्बा, सदा - सर्वदा, वंदनीया एवं पूजनीया होने के अतिरिक्त, भारत की नारी को, हर युग में परिभाषित भी करती है। सती सावित्री, कैकयी , कौशल्या , सीता - उर्मिला, राधा रुक्मणि, शकुंतला, विद्योत्तमा, और न जाने कितने ही नाम भारतीय नारी की शक्ति को विभिन्न रूपों को दर्शाते रहे हैं और सम्पूर्ण भारतीय जनमानस के प्रेरणास्तोत्र एवं वंदनीय रहे हैं। वैदिक युग से चली आ रही इस परंपरा में , मध्ययुगीन भारत में गहरा आघात हुआ। आक्रांताओं द्वारा नारी शक्ति का उत्पीड़न किया गया। विदेशी संस्कृति को जबरन थोपा गया। भारत की सबला नारी को अबला नारी के रूप में परिवर्तित करने का कुत्सित प्रयास किया गया। लग भग १००० साल की गुलामी के दौर में भारतीय नारी के अपमान और तिरस्कार के दौरान भी , भारत के सभी क्षेत्रों से समय समय पर , भारत की नारियों ने, अपना गरिमामय रूप दर्शा कर, भारतीय नारी चेतना की जोत को बुझने से बचाया है। मेवाड़ की मीरा बाई ने भक्ति दिखाई।

    महाराष्ट्र में जीजाबाई ने मातृ शक्ति के माध्यम से शिवा को छत्रपति शिवाजी बनाया। झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ने शत्रु पर सामने से वार कर के वीरगति पाई। मध्य भारत की अहिल्याबाई होल्कर ने न्याय की पराकाष्ठा दिखाई। पूर्व भारत में रानी गांडिल्यू ने अपने क्षेत्र में अंग्रेज़ों से हार नहीं मानी और लगातार लड़ती रहीं। कित्तूर की रानी चेनम्मा ने, अंग्रेज़ों को दो बार परास्त करके अपने राज्य की रक्षा की, किन्तु तीसरी बार अंग्रेज़ों ने षड़यंत्र कर के रानी के कुछ सैनिकों को अपनी ओर मिला लिया और रानी के युद्ध में शहीद होने के बाद ही अँगरेज़ कित्तूर के किले को जीत पाए। राजपूत रानी पद्मिनी ने जौहर की ज्वाला से खिलजी को परास्त किया। नव विवाहित हाड़ी रानी ने , औरंगज़ेब की सेना को युद्ध में परास्त करने के लिए, पति की एकाग्रता को सुनिश्चित करने और स्वयं के प्रति मोह विछिन्न करने के लिए , अपना शीश काट कर निशानी के तौर पर रणक्षेत्र में भेज दिया था।
    भारत के विभिन्न अंचलों में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जो भारत की नारी के सशक्त रूप का प्रमाण है।
    क्षोभ का विषय है की सम्पूर्ण भारतीय जनमानस को कुछ ही नामों के अलावा अन्य महिलाओं के बारे में कोई उल्लेखनीय जानकारी ही नहीं है । लेकिन स्थानीय स्तर पर नारी के भिन्न भिन्न शक्ति स्वरूपों लोग आज भी नमन और वंदन करते हैं।

    स्वतंत्रता के उपरान्त, संविधान प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार मिलने के कारण, समाज में व्याप्त, मध्ययुगीन नारी उपेक्षा की सोच में परिवर्तन आया है। शिक्षा एवं रोज़गार में सामान अवसर उपलब्ध होने के कारण स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद व्यापक रूप से माता पिता भी अपनी बेटियों को खुले आसमान में उड़ने के लिए प्रोत्साहित करने लगे हैं। यूँ तो सदियों की संकुचित मानसिकता एकाएक परिवर्तित नहीं हो सकती, किन्तु संविधान एवं सरकार के प्रोत्साहन से समाज के नज़रिये में व्यापक बदलाव भी आया है।

    आज अग्नि पुत्री के रूप में टेस्सी थॉमस , भारत में मिसाइल प्रोजेक्ट देख रही हैं। तो किरण मजूमदार शॉ ने उद्योग जगत में अपना स्थान बनाया है, खेल जगत में तो मैरी कॉम , सान्या मिर्ज़ा, पी टी उषा , साइना नेहवाल , पी वी सिंधू , इत्यादि अनेक नाम उल्लेखनीय हैं , पर्यावरण जागरूकता फ़ैलाने वाली सालूमरादा थिमक्का हों या महिलाओं में आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाने वाली मदुरै चिन्ना पिल्लै हों भारत की रक्षा की ज़िम्मेदारी उठाने वाली निर्मला सीतारमण हों अथवा भारत की साख पूरे विश्व में बढ़ाने वाली सुषमा स्वराज हों। यह सभी महिलाएँ भारत की सशक्त नारी के विभिन्न स्वरुप हैं सबकी प्रेरणा स्त्रोत हैं।
    भारत की कानून व्यवस्था बनाने वाली संसद में लोकसभा अध्यक्ष के रूप में श्रीमती मीरा कुमार और श्रीमती सुमित्रा महाजन जी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
    भारत की इस पावन धरा पर एक तरफ अति साधारण परिवार की बहुत ही सामान्य महिला श्री मति लक्ष्मी बाई केलकर ने राष्ट्र प्रेम की अलख जगा , महिलाओं में मातृत्व , कर्तत्व, नेतृत्व को पोषित करते हुए विश्वव्यापी महिला संगठन खड़ा कर दिया जो आज भी समाज में जागृति व विस्तार में संलग्न है , और दूसरी ओर प्रथम प्रधान मंत्री की पुत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की महिला प्रधान मंत्री बनकर , पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति दिला कर , विश्व की सम्मानित एवं ताकतवर प्रधानमंत्री के रूप में पहचान बनाई। भारत में सभी महिलाएँ अपने अपने स्तर पर अपना उत्कृष्ट देने की क्षमता रखती हैं। मातृ शक्ति के रूप में तो, राष्ट्र निर्माण की ज़िम्मेदारी भी, महिलाएँ सदा से सहर्ष निभा रही हैं। किन्तु आधुनिक युग एवं वैश्विकरण के बढ़ते दबाव के अंतर्गत आज की महिलाएँ समाज से तुलनात्मक रूप से उदार सोच की अपेक्षा भी रखती हैं ताकि नारी रुपी , सरल , अविरल , रसभरी , सुरसरी भावी पीढ़ी को शक्ति - संस्कारों से सिंचित करके पुष्ट करती रहे।

    Friday 5 June 2020

    " महिला अपराध", समाज अपराध का द्योतक है ।


    जहां कन्या को पूजने की प्रथा है। पर नारी को माता ,बहन ,व पुत्री समान व्यवहार की परंपरा है । वहां कन्या भ्रूण हत्या ,दहेज हत्या, बलात्कार इत्यादि जैसे, महिला अपराध , संपूर्ण समाज को दोषी ठहराते हैं। कालातीत अवधियों से सभी समाजों में , अच्छे- बुरे कर्म सदा व्याप्त रहे हैं, किंतु समय विशेष में जब नकारात्मक कर्मों और उसके परिणामों की व्यापकता बढ़ जाती है ,तो सभी को जागरूक होने की आवश्यकता पड़ जाती है । सैकड़ों सालों की दासता से ग्रसित समाज में , महिलाओं के प्रति बर्बरता से भयभीत हो , कन्या भ्रूण हत्या पनपने लगी , तो, आधुनिक सुख सुविधा के लालच ने दहेज हत्या को बढ़ावा दिया और इंटरनेट के विस्तार ने अशिक्षा और अभद्रता के चलते, बच्ची से बूढ़ी तक उम्र की , सभी सीमाएं तोड़ते हुए , बलात्कार में पाशविकता की भी हद पार कर दी ।
    सभ्य समाज कहे जाने वाले हम लोग ,अभी भी बेटे - बेटी के प्रति दोहरे मापदंड अपनाने से दोषमुक्त नहीं हुए हैं। हम लोग, सारे उपदेश सारी शिक्षाएं किशोरावस्था प्राप्त कर रही लड़की को तो देते हैं , किंतु इसी अवस्था में लड़के को स्त्री सम्मान और स्त्री गरिमा का पाठ पढ़ाना भूल जाते हैं । और तो और, जाने-अनजाने लड़कियों को लेकर होने वाले मजाकों का हिस्सा भी बन जाते हैं । लड़कियों के वस्त्रों पर तो टिप्पणी सहज है , परंतु स्वयं की सोच की परख, प्रश्न सूचक है ।
    दोहरी मानसिकता से हमें उबरना होगा । परिवार, समाज की प्रथम इकाई है । पारिवारिक स्तर पर ही , सही सोच , सुसंस्कारों को , दृढ़ करना होगा ।


    स्वतंत्र भारत में संविधान प्रदत्त स्त्री समानता ने ,महिलाओं के प्रति सकारात्मक माहौल पैदा किया है । शिक्षा - रोजगार में समानता के अवसर हैं । छोटे परिवारों के कारण बेटियों को भी लाड - प्यार में बढ़ावा मिल रहा है । किंतु सामाजिक ताने-बाने में खुद की बेटी और दूसरे की बेटी के प्रति मानदंडों में बहुत बड़ा अंतर दिखाई देता है । महिला ही महिला की सबसे बड़ी संरक्षक हो सकती है । माता के रूप में महिला को पुत्र और पुत्री दोनों को ही सुसंस्कार देने अति आवश्यक है । फिर वह महिला भले ही किसी भी ,आय वर्ग, जाति वर्ग ,धर्म वर्ग , क्षेत्रवर्ग से संबंध रखती हो । हमारे सामाजिक परिदृश्य में, सामान्यतया महिला की पुरुषों ( जैसे पति ,पिता, भाई ...आदि) के सामने बहुत मजबूत स्थिति नहीं होती। किंतु माता के रूप में ,पुत्र - पुत्री ,"मां" के आंचल से ही बंधे होते हैं । यहां "मां" को एक "महिला" का उत्तरदायित्व भी वहन करना ही होगा ।
    स्कूलों में भी हर स्तर पर , महिला सम्मान और स्त्री गरिमा के अभ्यास आवश्यक है । यहां भी अधिकांशतः महिलाएं ही विद्यार्थियों को शिक्षित कर रही हैं । शैक्षिक एवं बौद्धिक क्षमताओं को निखारने के साथ-साथ , लगातार 12वीं कक्षा तक ( लगभग 14 वर्षों तक ) पारिवारिक संस्कारों को भी अभ्यासित करवाना, दकियानूसी विचार नहीं , अपितु स्वस्थ मानसिकता वाले समाज की नींव है । झुग्गी बस्तियों में, स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से, स्त्री - पुरुषों द्वारा, सम्मिलित रूप से, न केवल बच्चों में अपितु बड़ों में भी स्त्री गरिमा और सम्मान को प्रतिस्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए । यह वह वर्ग है , जहां जीवन जीने की मूलभूत जरूरतों को पूरा करना ही एक चुनौती है , वहां इंटरनेट और मोबाइल, उनकी अतृप्त इच्छाओं के आसमान और वास्तविकता की गहरी खाई के मद्देनजर आसानी से , दिग्भभ्रमित कर देता है, और उनमें से कुछ, विकृत मानसिकता के चलते ,जघन्य अपराध कर देते हैं ।
    प्रचलित उपभोक्तावादी संस्कृति में नारी का चित्रण सम्मान के रूप में कम , बल्कि वस्तु के रूप में अधिक हो रहा है। इस दिशा में संपन्न वर्ग को भी सोचने - समझने के अलावा मजबूती के साथ कुछ करने की आवश्यकता है । स्त्री को स्वयं को अबला नहीं, बल्कि सबला , समर्थ और शक्ति के रूप में पहचाना होगा । जागरूकता , सजगता , शिक्षा , स्वाभिमान, आत्मरक्षा, आत्मनिर्भरता ,सौम्यता, नैतिकता आदि गुणों की तुला में स्वयं को तोलना होगा । बेचारगी ,अनभिज्ञता, लोभ, लालच को भी त्यागना होगा ।

    Tuesday 2 June 2020

    लॉक डाउन - एक मंथन


    21वीं सदी के 20 वें वर्ष में "कोरोना" नामक विषाणु ने, पूरे विश्व को बंधक बना दिया है। चर्चा इस बात पर की जा सकती है , कि यह विषाणु मानव निर्मित है अथवा प्राकृतिक, किंतु सच्चाई यह भी है कि एक विषाणु पूरे विश्व को पंगु बना सकता है । निश्चित तौर पर मानव इस अल्पावधि अस्थाई समस्या से शीघ्र अतिशीघ्र मुक्ति भी पा लेगा । लेकिन इस बीच समस्त संसार के हजारों लोगों को इस विषाणु ने आहत भी कर दिया है और संपूर्ण जगत को कई सबक भी दे दिए हैं । जरुरत इस बात की है कि, सभी देश और उनके नागरिक वस्तुस्थिति का मंथन करके प्रकृति और मानव में सुंदर संतुलन स्थापित करें।
    जिस प्रकार कमान से छूटा हुआ तीर,यह नहीं देखता कि उसके निशाने पर कौन है । उसी प्रकार "कोरोना विषाणु" ने, अमीर देश- गरीब देश, छोटा देश - बड़ा देश ,गोरा देश - काला देश, ठंडा प्रदेश - गर्म प्रदेश , समाज के सभी वर्गों ,राजा - रंक ,सभी जाति , सभी धर्मों, सभी भाषा, सभी नस्लों को अपने निशाने पर समान रुप से ले रखा है ।
    अब यह जिम्मेदारी स्थानीय सरकारों, प्रशासन व समाज की है कि वह मानवता को बचाने के लिए, कितनी गंभीरता के साथ, स्वयं को बचाते हुए ,इस वायरस का सामना करते हुए , इसे निष्फल कर सकें ।
    जागरूकता व समग्रता के साथ, प्रशासन से सहयोग एवं सरकारों के दिशा निर्देशों के अनुपालन के माध्यम से, इस "कोरोनावायरस" को निष्फल एवं नष्ट भी कर सकते हैं । इसके साथ ही साथ सामाजिक एवं व्यक्तिगत स्तर पर आत्म विश्लेषण करके, इस "लॉक डाउन" अवधि में कुछ ना कुछ उत्कृष्ट निकालकर राष्ट्रीय स्तर पर आंशिक योगदान करके गुणात्मक प्रभाव भी पैदा कर सकते हैं ।
    निश्चित रूप से , बाजार आधारित अर्थव्यवस्थाओं पर यह संकट बहुत अधिक नकारात्मक प्रभाव डालेगा ।

    औद्योगिक उत्पादन, वितरण, आवागमन इत्यादि लगभग ठप होने के कारण संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था शिथिल हो जाएगी। फल स्वरुप विश्व स्तरीय आर्थिक मंदी का भी सामना करना पड़ सकता है तथा इससे समस्त संसारी प्रभावित भी होंगे । रोजगार एवं आय इत्यादि के अवसर भी कम हो सकते हैं। उत्पादन में कमी की समस्या के कारण, मांग और पूर्ति के असंतुलन के फलस्वरूप तीव्र महंगाई जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है।
    वास्तव में "कोरोनावायरस " महामारी संकट के कारण हुए, "लाॅकडाउन" के उपरांत का परिदृश्य भी बहुत सुखद नहीं, अपितु चुनौती भरा ही नजर आता है । प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए आवश्यकता इस बात की है कि, समाज के सभी लोगों को ,इस "लाॅकडाउन" के समय को, अपनी आत्मिक शक्ति को ,सुदृढ़ करने के लिए उपयोग करना चाहिए । ये समय अपने आत्मविश्लेषण में लगाना चाहिए । नकारात्मक विचारों को दरकिनार करके , अपने सकारात्मक , उत्साही विचारों और कार्यों से भर देना चाहिए।
    इतने वर्षों से लगातार जीवन की आपाधापी, भागदौड़ मारामारी प्रतिस्पर्धा के चक्र में उलझे इंसान के लिए, यह "लॉक डाउन" उसे समय देता है अपने लिए जीने का, अपने परिवार में रमने का, अपने बच्चों में संस्कार सुदृढ़ करने का क्योंकि इंसान इस वक्त अपने घर में ही है । उसे कहीं जाने की बाध्यता नहीं है ना ही अचानक किसी के आने पर उसे अपनी दिनचर्या बाधित करने की जरूरत है ।
    कहीं किसी दिखावे की जरूरत भी नहीं है। जो है, जैसा है, जितना है , उसमें परेशानी भी नहीं है । संयम और संतुलन से, संतोष भी प्राप्त हो जाता है "जान है तो जहान है " इस मूलमंत्र को जहन में रखते हैं , तो कभी कोई चीज या बात पर कोई असंतोष हो, छोटी-मोटी परेशानी हो , तो वह भी छूमंतर हो जाती है । "लॉक डाउन" ने समय दिया है, दोस्तों रिश्तेदारों से गप्पे लड़ाने के लिए , भूले बिसरे को याद कराने के लिए , अपने शौक को निखारने , रुचियों को संवारने के लिए, नई-नई चीजें और गुस्ताखियां करने के लिए, संपूर्ण विश्व को देखने और गहराई से समझने के लिए । "लॉक डाउन" सिखाता है कि, वास्तव में श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए, संयम, संतुलन, अपनापन जैसे सद्गुण अधिक महत्वपूर्ण है । बाजारीकरण की अंधी दौड़ में ,सधे कदम से आगे बढ़ कर, स्वयं की पहचान कायम करना आना चाहिए।
    "लॉक डाउन" में कार्यरत स्वास्थ्य-कर्मचारी, सुरक्षा-कर्मचारी, मूलभूत सेवा-कर्मचारी ,स्वच्छता-कर्मचारी ,मीडिया-कर्मचारी आदि, "कोरोना योद्धाओं" के प्रति ,अधिक सम्मान का भाव, आज के हर नागरिक के दिल में, बढ़ रहा है ।
    भारत को इस महामारी से बचाने के लिए 25 मार्च से संपूर्ण "लॉकडाउन" किया गया है अर्थात सभी को अपने-अपने घरों में रहने के लिए कहा गया है। 25 मार्च से शुरू हुए नवरात्रों में जनसाधारण अपने-अपने सद्भाव - सदाचार में, थोड़ी-थोड़ी भी वृद्धि करता है तो निश्चित रूप से सकारात्मक ऊर्जा में बहुत अधिक गुणात्मक वृद्धि होगी और नकारात्मक कोरोना का क्षरण शीघ्र अति शीघ्र होगा ।
    इन "कोरोना योद्धाओं" का मनोबल बढ़ाने के लिए, यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने सद्गुणों को सुदृढ़ करेगा तो "कोरोनावायरस" संकट जल्द ही समाप्त भी होगा और किसी भी तरह का अधिक नुकसान भी नहीं कर पाएगा।